बहुत ही सुन्दर सा बड़ा अलिशन और प्राचीन हनुमान मंदिर है हमारे यहाँ, बहुत लोग आते है वहां यु तोह गरीब अमीर सब सर झुकाते है ।
मै भी गई थी अपनी दोस्त के साथ ।
एक बच्ची की आवाज़ आई "माँ कचोड़ी खिलादो ना"। एक इसी आवाज़ से हमारा भी दिल हुआ खाने का तोह दो डोनो में लेली कचौड़ियां, बैठने की जगह ढूंढ़ रहे थे वाही एक बुजुर्ग दादी दिखीं । फटी हुई साड़ी चेहरे पे शिकन, लग रहा था भीक मांगना नई चाहती पर भूक बड़ी चीज है क्या करे।
हम उनके पास गए अपनी कुरकुरी कचौड़ियां छोड़ कर, और हमने उनके लिए खूब कचौड़ियां पैक करवाली । दादी को देने गए तोह नाजाने क्यों डर सी गई वों, हमने बोला लेलो दादी और हमारे साथ ही खाओ बाकि रात में खाना ।
उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और रो पड़ी । हम कुछ नहीं बोले । फिर दादी ही बोली "मेरे दो लड़के हैं, पर मुझे अपने साथ कोई नहीं रखता एक की बहू मना करती है और दूसरा तोह छोटा है बेचारा समझता नहीं, पर भगवान की दया से दो लड़के है दोनो के" और वो रोतीं रही, फिर बोली "बेटा जो मिल जाता है वही खा लेती हूं रुखा सुखा, बच्चे आते है कभी मिलने मुझसे यही, खाना भी देदेते है कभी पर आज तक इतना पुरे दिन का खाना कोई देके नहीं गया बीटा भगवन तुम्हारा भला करे" और बोली की "दांत नहीं मेरे पर खाऊँगी मेरे बचे जैसे हो ना तुम लोग भी तोह" और हमारे सर पर हाथ फेर दिया ।
उस दिन समझ आया की रिश्ते और भूख की कहानियां ही अलग हैं यहाँ ।
-