क्या करे उसकी कामुकता उसकी सुन्दरता की तरह बेतहाशा थी. उस कामुकता की देवी ने खुद को जिस पुरुष को अपना शरीर सौंप कर अपने शरीर की अग्नि को ठंडा किया. वो पुरुष भी कितना नसीब वाला रहा होगा. जब दो लोगो के शरीर की वासना, यौवन का आनंद लेने की चाह और घर पर कोई ना हो तो दोनों ही एक दूसरे की हवस में खो कर स्वर्ग का आनंद लेते हैं और कभी कभी प्रेम भी हो जाता हैं. एक सत्य यह हैं कि हद से ज़्यादा कामुकता बड़ी उम्र की महिलाओं में ज़्यादा होता हैं.
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kamukta or
vaasna pr likhna bhi
ek kala hai
kisi ki kala
pr shak na kro
or apne bhadde
khyalo ko
potli me jabt kro
jitna gehrai
me jaoge
dubte jaoge or
milega us saar
ka rass to maikhano
me bhi dhunte reh jaoge-
अगन में काम की सुलग रहा था उसका तन मन
उत्तेजित,उद्वेलित और मदहोश थी अपने प्रियतम का वो,
अंगों में थी प्यास भरी जहन में छाया था वासना का सुरूर
फ़िर प्रीतम ने लबों से अपने उसके लबों को सहलाया
चूमा,चूसा उरोज़ों को ,नितंबों और योनि को मसला और सहलाया
उसकी काम अगन को इसने खूब भड़काया, मदमस्त बातों से
अपनी उसको मस्ताया और तड़पाया, उह आह की आवाजों के
साथ एक जादुई नशा सा उसके बदन पे छाया, कामअग्नि से
जलते उसने अपनी जांघों को फैलाया, प्रीतम ने तुरंत मधु कोष
में जिव्हा डाल मधुर रस का किया पान, देख प्रीतम की कड़क
इंद्री उसकी योनि फड़क गयी, इंद्री ने योनि द्वार पर किया तीव्र
प्रहार एक बार में चीरता बाधाएं घुस गया स्वर्ग के द्वार, उसके मुँह
से चीखें निकलीं आँखों से आँसू खुशी के, प्रीतम की इंद्री भी
मचा रही थी खूब धमाल, अंदर बाहर, बाहर अंदर खूब मचा रहा
था बवाल, वो भी अपने नितंबों को उछाल उछाल के दे रही थी साथ,
फ़िर उत्तेजना का आ गया अंतिम मुक़ाम, दोनों ने ही धक्कम पेल
में लगा दी अपनी जान, होने लगी वर्षां आनंद की छूटी खूब
पिचकारी, मदन रस से भर गयी योनि सारी, वीर योद्धा की तरह से
लिंग बाहर आया लथपथ था मदन रस में पर मुख पे तेज था छाया,
अपने अधरों को योनि पर रख कर मधुर रस पान किया,
फ़िर आलिंगनबद्ध होकर होकर दोनों ने विश्राम किया,,,,
**Shailen**
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जरा चूम लूं लब तेरे, देखें कैसा स्वाद है,
देखें जरा चासनी भरे हैं , या जन्नत का गुलाब हैं...
दे इजाज़त हुस्न-ए-दीदार की, आज रात के लिए......
देखें तो आग है इश्क़ की, या शिमला की बहार है.....
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पुरुष की कामुक निगाहें
कभी कभी इतना नीचे गिरती हैं,
कि वह स्त्री के कुछ अंगों पर ही जाके टिकती हैं,
कभी वक्षस्थल पर रुकती हैं,
तो वासना में लथपथ फिसलती...
कमर के नीचे आकर ठहरती हैं,
उसमें ना उसको जननी दिखती है,
ना ही बहन नजर आती है,
सभी पहचानो को इतर रख...
नरपशु को मात्र वह मांस का लोथड़ा दिखती है,
मात्र वासना बुझाती एक देह दिखती है,
पुरुषों की इस दुनिया में
कितनी सिकुड़ गई है तू
पुरुष की वासना तले
बोनसाई हो गई तू
हे हत भाग्य नारी!
अब बोनसाई हो गई है तू।
#अघोरी-
इश्क की हवाएं , जिस्म जला रही है....
सांसों की गर्मी , कदम बहका रही है.....
रात , सुहागरात वाली आई है ,
और ये रात , दो जिस्मों को मिला रही है....-
हिर्दय में उठने वाली एक कामना का भाव ही प्रेम है, जिसको समझने के लिए प्रेम युक्त कामुक मन का होना जरुरी है।
( आज का प्रेम प्रसंग )-
कड़वा सच
कामुकता के खेल को इश्क का नाम देकर ।
आज कितने रोमियो जूलियट ,लैला मजनू बने फिरते हैं।
इनके सुबह के प्यार रात को बेड पर निकलते हैं।।
Composed by -Pradeep Maurya-
Jab mai kamukta ka vivaran karta hu,
To log behaya kehte hai!
Lekin khud nachti hui aadhi nangi,
Aur Puri nangi tasveerie'n dekhne me jhijhak mehsus nai karte.-