अरे! उन्हें प्रेम के उपदेश मत दो...
जो प्रेम के गोते पहले ही लगाई बैठी हों।-
की मित्र अब हमसे दूरियां बनाने लगते हैं,
नौकरी का किस्सा अब हमको सुनाने लगते हैं।
की अब उन दोस्तों के घर, दुकान, रिश्तेदारी में न जाना-ए-दोस्त ,
क्या पता था? की अब सबको हमारी विफलता का किस्सा सुनाने लगते हैं।।
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अरे! पागल कैसे हो जाते हैं?
टेंशन में खुद में खुद से कैसे मिल जाते हैं?
दुनियां के रिश्ते, नाते सब याद कैसे आ जाते हैं?
कमबख्त हमारी बारी आते ही सबकुछ कैसे भूल जाते हैं?
अरे! देखो पागल ऐसे हो जाते हैं।-
'दीपावली दीपोत्सव की हार्दिक शुभकानाएँ'
मन, उमंग और उल्लास का यह पर्व मानव के जीवन का एक अद्भुत और हर्षयुक्त भाव को प्रकट करता हैं।
अनेकता में एकता का भाव सीमेटे हुए यह उत्सव मानव सभ्यता और संस्कृति को एक साथ बनाए रखता हैं।
प्रभु श्री राम के आगमन के दौरान जो अयोध्या जगमगाई वैसे ही संसार में जो किसी कारण अपने प्रियजनों से बिछड़ गए हैं उन्हें भी प्रभु अपने प्रियजनों से अवश्य मिलाए...
ऐसी हम प्रभु से विनती करते हैं... जय श्री राम-
दुःख के समुंदर में डूब कर निकला हुआ वो ओस हूँ मैं।
जिसमें माँ, बहनें और पुत्री का सयोंग हूँ मैं।।
बुआ-फूफा, चाचा-चाची और सास-ससुर आदि का वियोग हूँ मैं।
शेष बचा पत्नी के करुण का शोक हूँ मैं।।
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अरे! हाल-ए-दिल का इलाज़ वो नही,
जो दिल के क़रीब रहकर दिल का रोग जान ले।
हा!हा! हम तो टूटे हुए आशिक़ी का वो जाम है,
जो जाम पिए बिना ही दिल के मर्ज़ का दर्द जान ले।-
कुछ अज़नबी वो रास्ते अक़्सर वो पल याद दिला देते है, जिन्हें हम अक़्सर भूलने की कोशिश किया करते है।
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दीवानों ने ज़िन्दगी से बात करके, दीवानगी पढ़ ली,
आशिक़ों ने आशिक़ी से बात करके, आशिक़ी अब पढ़ ली।
हम तो ठहरे हुए दरिया का, किनारा ही थे,
वो बहते हुए नदियों की आरज़ू बन गईं।-
करवटें बदलते हुए ख़्वाब का नज़ारा बदल गया,
हम किनारे क्या हुए की तैराना बदल गया।
हो चली यह आरज़ू उसी मका के सामने,
दिल ज़रा सा क्या हटा दिलवाला बदल गया।-