गर्मी दिमाग़ मे हो तो जहर होती हैँ, तेरे मेरे दर्मिया तो नजदीकियो का सबब हैँ ये
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खोई, खोई गुमसुम सी रहते हैँ कहीं भी दिल नहीं लागत, और लगे भी कैसे पहला पहला प्यार और मौसम की पहली बारिश नहीं हुई अब तक
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तफ़्तीश भी न मुमकिन
कि ख़ुमारी है बेतरतीब
कैसे बताऊँ क्यों
कुछ भी अच्छा नहीं लगता-
कहीं भी दिल लगता नहीं
उजड़े दिल को बसाना फिर आसाँ नहीं
कूचा ए यार में गए ज़माने हो गए
ख़ुदा ने मूँह मोड़ लिया तो मेरा ख़ैर नहीं
दीवाना हूँ कई बेड़ियाँ तोड़े मैंने
दिल मगर किसी से अब लगता ही नहीं-
رفاقت مرض ہے ایسا
کہیں بھی دل نہیں لگتا
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دریاءےژیان ہے یہ جانا
جس کا کنارہ نہیں ملتا-
कही भी दिल नहीं लगता, ना वो मिलते हैं
कैसे दिल को समझाये, वो क्यों समझते नहीं है
दिल को चैन नहीं , निंद आखोंमे नही है
ना करना प्यार किसीसे, के फिर दिल कही भी नहीं लगता-
Baat bs itni si thi
jabse unse dil lagi hai
tabse "kanhi or dil nahi lagta"..-
Ajab si kash-ma-kash hai ye...
Kahiñ bhi dil nahi lagta...
Agar tu saath hai mere...
Safar mushkil nahi lagta!
Ye nuskha to adhoora hai...
Mujhe kaamil nahi lagta!
Ye aashiq sar kataayega...
Ye to buzdil nahi lagta!
Lagaa di jaan ki baazi...
Magar qaabil nahi lagta?-
"अगर हलका होता तो पहले सुट्टे में ही उड़ जाता वो,
जिसे तुम बरसों से सुलगा रहे हो..!!"
ये दर्द भी कितना अजीब है..!!-