कभी लगता है मेरी जिन्दगी में कोई नहीं है,
ओर ये खयाल मुझे बहुत अंदर तक झकझोर देता है
मेरे अंदर बस अब थोड़ी ही जान बची है ऐसा लगता है
मुझे "मैं" बने रहने पर कमजोर कर देता है
मेरा मन मुझे दुनियां में हर किसी से शिकायत है कहता है
फिर में सोचती हूं कहीं ये शिकायत मुझे खुद से तो नहीं..!!!
क्या में हर किसी के लिए बहुत कम पड़ गई हूं..!!
हां मुझे ऐसा लगता है में भीड़ में अब थोड़ी सी रह गई हूं.....-
Loves 2 write, dats y m here..
I got someone who sure about me... read more
हां में ये जानती हूं की अक्सर खामोशी रिश्तों को बचा लेती है
पर हद्द से ज्यादा खामोशी मोहब्बत ही ख़त्म कर देती है।-
ज़िन्दगी के अनगिनत नए पन्नों के नीचे दब जाती हैं
फिर कहीं एक कोने से मुझे झांकती हैं
अपनी खुशबु मेरे दिल में बिखेर जाती हैं
पुराने सारे किस्से पल में कह देती हैं
यादें कभी दिल से नहीं जाती हैं
वो कहां पुरानी होती हैं !!-
क्या तुम एक औरत बन सकोगे
बार बार अपना दिल रफू कर सकोगे
रोज एक कोने में चुप चाप आंसू बहा सकोगे
तकिए के नीचे घूंघट के पीछे अपनी आवाज़ दबा सकोगे
क्या तुम कभी औरत को समझ सकोगे।।
उसका मां बाप से दूर हो जाने का दर्द महसूस कर सकोगे
भाई बहन का साथ खो जाने का डर समझ सकोगे
बचपन का आंगन छूट जाने का दर्द समझ सकोगे
क्या तुम कभी एक औरत को जी सकोगे।।
किसी के इंतेज़ार में अपनी शामें बीता सकोगे
अपनी जिंदगी को किसी ओर की हांमी का मोहताज कर सकोगे
किसी एक दिल को बार बार जितने की नाकाम कोशिश कर सकोगे
अपनी ख्वाहिश को चुपके से कहीं कोने में दबा सकोगे
क्या तुम कभी एक औरत जैसा भार उठा सकोगे।।
अपनी आह की आवाज दबाना सिख सकोगे
तुम भरी आंखों से कभी मुस्कुरा सकोगे
क्या दूसरों के लिए खुद धीरे धीरे बुझ सकोगे
हर दिन अपने वजूद के खत्म होने का तमाशा देख सकोगे
क्या तुम एक औरत होने का गुनाह कर सकोगे
बार बार अपना दिल रफू कर सकोगे।।-
मैं अकेली हूँ इससे ज्यादा डर इस बात को मान लेने से लगता है की
"मैं अकेली हूँ"-
कुछ पल की हंसी यादें बन जाती हैं
कुछ दिन का साथ यूंही कट जाता है
किसी का हाथ चुपके से छूट जाता है
दिल का एक टुकड़ा कहीं कोने में पड़ा रह जाता है-
कल देर रात की सड़कों पर गुब्बारे बेच रहे थे
वह तीन बच्चे कड़ी ठंड में साथ साथ खड़े थे
मैंने एक मांगा तो कहने लगे तीन लेलो दीदी
भूखे थे कहीं कह रहे थे दूध खरीदेंगे तीन के पैसों मे-
मैं बहुत दूर कहीं जाना चाहती हूं
शायद सबसे कहीं छुप जाना चाहती हूं...
मैं खुश हूं नहीं हूं, में यह नहीं जानती,
हंसती हूं मगर खुशी महसूस नहीं करती,
तुम पूछोगे तो क्या जवाब दूंगी में
ये भी नहीं जानती,
लगता है बड़े दिनों से जैसे कहीं खो गई हूं,,
पर हां में चाहती हूं
कभी तुम पूछो मुझसे,
के कैसी हूं मैं!
चहचहाती मैं चुप सी क्यों हूं!
क्या में उदास हूं !
हां मैं तुम्हें बताना चाहती हूं
में बहुत दिनों से खुश नहीं हूं ।।-
मां का साथ होना कोई दुआ से कम नहीं होता
और जब मां दुआ देती हैं तो कोई गम नहीं रहता-
निकलती हूं में जब शाम में
लगा कर बालों में तेरी मोहब्बत का गुलाब
यकीन मानो सारी दुनिया मेरे मुकद्दर पे रश्क करने लगती है-