कि आखिर क्यों हमारा यह भारत देश,
इतना शिखर पर पहुंच कर भी नहीं पहुंचा है।
अरे किस लड़के में इतनी हिम्मत है चलो बताओ,
जो मैं लड़की हूं होने का दावा कर सके।
अपने घर के मां, बेटी,बहू,बहन की,
इज्ज़त का बड़ा ख्याल रहता है।
फिर आखिर क्यों दूसरे के घर के लक्ष्मी के साथ,
बेहद तरीके से खेलने की ख्वाहिश रखते हैं।
वो रब तुम जैसे लोगों को,
फांसी से भी बढ़कर सज़ा दे।
यही मेरी दिल से कामना है,
तभी हमारी डॉ.प्रिंयका दीदी को सुकून मिलेगा।।
-
न रोक सकी जब तुझको ज़मीर ही तेरी,
फिर उसकी चिखे तो अब बेअवाज़ हैं|
उस मां पर क्या बीती होगी जिसकी तु औलाद हैं |
ना अब उसमे चीखने की आवाज़ हैं..
वो जिस्म नही बस अब राख हैं...
तु खुश तो होगा ही बहुत,
सज़ा मिलनी जो सालो बाद है |
पर सोच तो लेता तु ज़ालिम,
तेरी माँ,बहन और महबूबा वही औरत की जात हैं|
ना अब उसमे चीखने की आवाज़ हैं..
वो जिस्म नही बस अब राख हैं...
न बिलख सकेगी वो,
न सुनने के लिए बची हैं वो कि वही गुनहगार हैं |
-
सकाळी फोन वाजला
झोपेतून जागे झाली.
Social media वर बातमी आली.
पुन्हा निर्भया आठवली.
आता हे सर्व रोजचं झाले.
रोज नवीन निर्भया ह्यात सापडली.
डोळ्यावर पट्टी न्यायमूर्ती चा आहे .
आंधळा मात्र समाज झाला आहे.
लोकशाही असून हे दिवस आले.
फक्त status पूर्ती समाज उरले.
ह्यापेक्षा चांगले आमच्या राज्याचे राज्य होते.
कसले न्यायमूर्ती ना तेव्हा कसले कायदे होते .
न्याय मात्र चोख होते.
आजचा गुन्हेगार उद्या दिसत नव्हता.
शासन सर्वाना समान होते.
अजून कितीनी हे सहन करावे.
फक्त ती मुलगी आहे म्हणून किती दिवस असं घडावे.
तिच्या अब्रूला पण सन्मान मिळायला हवा.
प्रत्येक नराधमाला आतातरी फाशी वर चढवायला हवा.
-
हमदर्दी
=====
मत जलाओ मेरे लिए
मोमबत्तियाँ
मत लिखो तख्तियों पर
जस्टिस फाॅर प्रियंका
के मार्मिक स्लोगन
मत चीखो सड़कों पर
और मत दो धरने
संसद के आगे
किससे माँग रहे हो तुम
मेरी खातिर न्याय ?
अगर सच्ची है हमदर्दी
तो यूँ करो-
जला डालो उन हैवानों को
तुम्हारी उन मोमबत्तियों से
बना दो चिता उन तख्तियों की
जिनसे तुम
न्याय दिलाने चले थे मुझे।
अगर सच्ची है हमदर्दी तो
यूँ करो।
बोलो कर सकोगे ऐसा?-
प्रियंका हो या आसिफा हम कल भी चुप थे,हम आज भी खामोश है...
क्योंकि हमारी इंसानियत नामर्द हो गई-
कुछ रिवायतें अब बदलेगी कि, हर शिनाख्त का फैसला वो पट्टी बाँधे औरत ना करे
हाँ कोई मुठभेड़ हैवानियत को खाक करने को भी बुलंद हो।।-
"कहीं दहेज में जलती लाशे है,
कहीं जिस्म नोचते मंजर हैं,
और इन दरिंदो की वजह से
अब बेटियां कह रही मां से
कोख मे मारना बेहतर है☹️"-
पता नहीं कौन मोमबत्तियां पकड़ना
सीखा गए हमें,
वरना नारी सम्मान में
तो लंका दहन और
महाभारत करने की संस्कृति थी हमारी ।।-