लिखता हूँ,फिर मिटा देता हूँ।
कुछ शब्द जीवन की किताब से,मैं रोज़ छुपा देता हूँ।।
पाले हैं मन ने ख्वाब कई।
मैं जिम्मेदारियों का हवाला दे उन्हे यूंही दबा देता हूँ।।
पग पग देखें हैं तिरस्कार।
खुशियाँ कम,पर गम अपार।।
लिखकर आँसुओं की स्याही से,सब शौक उड़ा देता हूँ।
जीवन की वास्तविकता पर बेबस मुस्कुरा देता हूँ।।
वक्त बेवक्त हैं ख्याल कई आते।
अमीरों के बहुत हैं दोस्त, गरीबों के नज़र क्यु़ं नहीं आते।।
पैसे का मोल बस यूं ही भांप लेता हूँ।
मुठ्ठी भर जो दोस्त हैं, उनसे ब्रम्हांड नाप लेता हूँ।।
कठिन है पहेली,है डगर भी टेढ़ी।
मन में भावनाओं ने नई जंग भी है छेड़ी।।
कोशिश लाख कर के उन्हें बेमेल बता देता हूँ।
मैं जीती हुई बाज़ी को भी हारा खेल बना देता हूँ।।
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