चेहरा मुस्कुरा देता है
अंजान शख्स के लिए भी
ठहरना वहीं जहाँ दिल मुस्कुरा दे-
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पिता से
माँ की पूरी दिनचर्या होती है
चाहे वो सुबह की चाय हो या रात का गर्मा गर्म दूध का ग्लास-
कितनी अजीब है औरत की दास्तान-ए-ज़िंदगी
अपना घर छोड़ना पड़ता है
अपना घर बसाने के लिए-
बेशक शौक है उसे सुकून से आईना निहारने का
पर जो कुछ लम्हें बचते हैं
ग्रिहस्ती और नौकरी से,
वो साज श्रींगार की बजाय
अपने बच्चे पर लुटा देती है-
कुछ यूं भाव बढ़े हैं ख्वाहिशों के सभी के
अब इतवार तो बस जिंदगी के खर्चों में खर्च हो जाता है-
स्त्रियाँ
अपने पैरों पर खड़ी
लड़खड़ाती स्त्रियाँ
दफ्तर के साथ
घर भी चलाती स्त्रियाँ
मापी जाती हैं आज भी
घर की साज़ सजावट से
हर दिन खुद को साबित करती
थक कर चूर हो जाती स्त्रियाँ
-
हर बाप ढ़ूँढ़ता है अपनी बिटिया को महल
सीताजी उदाहरण है ,किस्मत बदलना मुश्किल है-
ज़िम्मेदारियाँ
चैन से नहीं बैठ पाता वो ६० वर्षीय पिता
ज़िम्मेदारियाँ आज भी उसे बूढ़ा नहीं होने दे रही-