दे दे ओ ख़ुदा मौत मुझे... सुना है आत्मा मर कर भी अमर हो जाती है... बेशुमार प्रीत पाती है... कम्बखत देह तो सिर्फ़ तरस कर रह जाती है... प्रेम के इक बोल को, आभास को... दे ख़ुदा अब मौत मुझे... की अब ये तरस चीरे जाती है... जान लिए जाती है!
डरते हैं उसकी खामोशी से आज कल... ख़ुशी मिलती है उसे खुश देख कर... क़ुबूल मेरी इक अर्ज़ कर ऐ मेरे रब... भर दे ज़ख्म मेरी झोली में उसके सब... बस ख़ुशी बख़्श दे उसको.. और उसे बेपनाह ख़ुश रख... !!
सुध बुध खोए इंतजार तुम्हारा कर रही है.. तुम्हारी रीना दुनिया से बैर लिए, तुम्हारी याद में.. ज़हर पिये जा रही है.. तुम्हारी रीना ओ पिया अब न देर करो, आन मिलो अब धीर अपना खोए जा रही है.. तुम्हारी रीना— % &
आख़िर क्यूं..!!! दुनिया हमें जिनकी पागल कहती है.. उन्हें ही एहसास नहीं होता....!! आख़िर क्यूं...!!! जिनके लिए सबसे ज्यादा तड़पते हैं ... अक्सर वही सबसे ज्यादा खफ़ा रहते हैं.. उन्हें ही उनकी बेवफ़ा लगते हैं हम..!!!— % &
क्या सही क्या ग़लत नहीं देखने लगते हैं.. अक्सर हर बार खुद को तुझसे हारा पाते हैं.. मत करो इतना परेशां ऐ दिल.. आख़िर क्यूँ तुम हर बार मुझसे जीते मिलते हो..?
माँ... काश !! फिर से उतनी हो जाऊँ... तेरी गोद में सर अपना रख.. सारे गमों को बहा जाऊँ.. माँ.. काश !! फिर से तेरे आंचल की वो छाया पा जाऊँ.. जिसकी शीतलता के साये में अपनी सारी तक़लीफ़े खो जाऊँ... काश!!! माँ.. फिर से उतनी हो जाऊँ..!!!