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जाओ मर जाओ कब तक यूँ बेगैरत जिंदो में रहोगे
ज़मीं पर लौट आओ कब तक यूँ बेपँख परिंदो में रहोगे
सुन मेरी मान तो तु वज़ू न कर मगर दुआ तो पढ़
खुदा को देखने दे कब तक यूँ काजियों के पैबन्दों में रहोगे
कुछ तो काम ऐसे करो के तुम भी कलंदर हो जाओ
अब तो सिर उठाओ कब तक यूँ सजदनशी बाशिंदों में रहोगे
और अगर वफ़ा निभानी है तो वतन-ए-हिन्द से निभाई जाए
वीर पृथ्वी बन जाओ कब तक यूँ जयचंदों में रहोगे
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संकट के इस घोर तिमिर मैं,कैसे जीता जाये द्वन्द
दूजी ओर गद्दार खड़े है,साथ में उनके हैं जयचन्द-
हमारे पूर्वजों ने कुछ जाती विशेष को मंदिर व कुछ और संस्थानिक जगहों पर प्रवेश वर्जित करने के पीछे जरूर कोई न कोई कारण रहा होगा। हालांकि समय के साथ वो बदलते गए और उनका प्रवेश अनिवार्य कर दिया गया। जो भी हमारे पूर्वजों ने किया वो गलत था।
परंतु आजके संदर्भ में केजरीवाल जैसे जयचंद लोगो को मंदिर व अन्य संस्थानिक जगहों पर प्रवेश वर्जित करना बहुत जरूरी है।
जबतक इसके जैसे जयचंद किसीभी देश मे रहेंगे वो देश कभी तरक्की नही कर सकता। मैं तो कहता हूं ऐसे लोगो को देश निकाला कर देना चाहिए।
सूचना: मैं छुआछूत को बढ़ावा नही देता।-
रामनवमी के दीप जले
कुछ जयचंद भी खूब जले
अब दीप फिर से जलेंगे
देखना हैं कितने जलेंगे-
आलम ये है कि अब किसी पर ऐतबार नही,
इतना मशरूफ हूँ ज़िन्दगी में इतवार नही,
आस्तीनों के सांपो से फुर्सत नही यारो,
दिल मेरा अब चिड़ियाघर जाने को तैय्यार नही।।।-