शब ए हिज्र पे जिंदगी गुजार ली हमने
तब से हर रात यूं ही गुजार ली हमने
वस्ल की आस लिए फिरते जो
दिल ए रवाँ की मैयत संवार ली हमने
चौक चौबंद था जिंदगी का हर एक कोना
उस इश्क में मीजान बिगाड़ ली हमने
हर्फों में लिखीं थी जो खुशियां हमारी
मस्तूर ओ मिसाइल में गुजार दी हमने
मरहलों खलिश है जिंदगी अभी तलक
इदारा ए सुकूत के दाखिले में गुज़ार दी हमने
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