सुनो......
सर्द सी ठंडी बेजान पड़ीं
मेरी दुनिया में
तुम गुलमोहर सी
दहक लेकर आना ।।-
गुलमोहर के फूलों सा ,
तेरा एहसास मुझमें बना रहा ।
कभी गहरी निराशा सा ,
कभी बेख्याली में हंसी सा ।
कुछ देर के लिए ,
महकती है दिल की बगिया ।
फिर खो जाता है ,
वजूद गर्त की खाइयों में ।
ना कोई दुआ ही काम आई ,
ना दवा का ही असर हुआ।
तेरी जुदाई का जख़्म जाना
नासूर सा हरपल हरा का हरा ही रहा ।-
जीवन के ग्रीष्म में
मिजाज़ गुलमोहर सा रखना...
सह कर लू के थपेड़े भी
रंग बेहिसाब बिखेरना।
तपन से उपजे ठहराव में
तुम अनंत ऊर्जा पुंज बनना..
जीवन के ग्रीष्म में
मिजाज़ गुलमोहर सा रखना।-
સૂરમયી સાંજે થોડું કલરવ જેવું લાગ્યું
આંખોમાં ગુલમહોરી પગરવ
જેવું લાગ્યું
નજરથી નજર નું મળવું જાણે
મોસમ માં ગુલાબી અવસર
જેવું લાગ્યું
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Just like
the latence of vapour
of filter coffee,
and transience of
the leap year,
Our spring lasted
a little less than
that of gulmohar.-
......And now those gulmohar flowers
Are With me to mark my Journey of Reminiscences...
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