मुझ से जुदा हो के कहता है मुझे तुम याद आती हो, किसी के पहलू मे बैठ के कहता है मुझे तुम याद आती हो, वक्त था बिन मौसम बरसता था, अब जार जार हो के कहता है मुझे तुम याद आती हो, निगाह भर देख लेता तो फिर भी मान जाती , नजरें फेर के कहता है मुझे तुम याद आती हो, ना पूँछो उसकी बदनसीबी का आलम , के सब कुछ खो के कहता है मुझे तुम याद आती हो ।
हूं परेशां हां अजीब बात है जिससे थी लवों पर मुस्कान उसने दिया आंखों में आबसार है मेरी तो हर रात के बाद एक और रात है। रहूं साथ तो छलावा , बिछडूं तो जीना मेरा मुहाल है हाय कैसी ये क़िस्मत, दोनो ही तरफ़ मात है। न बन सकी तुझ जैसी न बदल सकी तुझको निभाती चली फिर भी मिली ग़म की सौगात है। इश्क़? दो तरफ़ा? बड़ा बेवजह ये ख़्याल है काश......जनाज़ा ऐसा हो मेरा जैसे बरात है