ऐ मेरे दोस्त तू दुनिया है तू मेरी कमाई है
ठिठुरती ठण्ड से जग में तू स्नेहिल सी रजाई है
मुझे गिरने नहीें देता, गिरू तो थाम लेता है
जो तेरा हाथ कांधे पर तो आसां हर लड़ाई है
तू है तो फिर मुसीबत का लगे परबत भी राई है
तेरी मौजूदगी ने ही मेरी हिम्मत बढ़ाई है
मेरे दिल के सभी ज़ख्मों पे तेरी ही दवाई है
फटे टूटे हुए दिल की तूझे आती सिलाई है
जले और बुझ गए कितने ही रिश्ते इस कहानी में
फ़क़त इस दोस्ती से जिंदगी में रौशनाई है-
मेरा लेखन जीवन, प्रेम और मन की जटिलताओं को समझने की यात्रा है।... read more
समाज के दायरे के तहख़ाने तले
क़ैद हैं कई तितलियाँ...
कुछ के पंखों पर इज़्ज़त की सुई से
टांके लगाए गए हैं।
कुछ ने मान लिया है
कि ठहर जाने में ही सुंदरता है,
उड़ने में नहीं।
कुछ तितलियाँ रंगहीन हो चुकी हैं,
समाज की नज़रों के डर से।
पर हाँ...
एक तितली अब भी वहाँ है,
जो ख़्वाब देखती है...
दरारों से आती धूप की रेखा पर
कविताएँ लिखती है।-
कहाँ से चले थे, कहाँ आ गए
बड़े फ़ासले दरमियाँ आ गए
झुकी सी नज़र ये तेरी देखकर
बहारों में दौर-ए-ख़िजाँ आ गए
इबादत में आनी ही थी रंजिशें
मोहब्बत में जब ख़ानदांँ आ गए
हमें अपनी हद का पता तब चला
मुक़द्दर में जब इम्तिहाँ आ गए
सफ़र में तेरा हाथ छूटा ही था
कि तन्हाई के कारवाँ आ गए
तेरी याद के सूखे पत्तों तले
जलाकर हम अपना जहाँ आ गए-
सबने रंगीन पैरहन देखा
क्या किसी ने उदास मन देखा
नाम के उन तमाम रिश्तों में
हर तरफ़ झूठा अपना-पन देखा
बात निकली थी आइने की जब
उनकी आँखों में आदतन देखा
उसको तन्हाई फिर न छू पाई
जिसने भी इक दफ़ा सुख़न देखा
हमने दो-चार लफ़्ज़ बोए थे
पढ़ने वालों ने इसमें फ़न देखा-
ख़मोश दिल की ज़ुबान आँसू, पढ़ो तो कोई किताब आँसू
करार आँसू सुकून आँसू , नहीं है कोई अज़ाब आँसू
जो यार रूठे मनाएँ कैसे, ये फ़ासले हम मिटाएँ कैसे
वो एक पल में पिघल गए जो, बहा दिए दो नक़ाब आँसू
हर एक जानिब ग़मों की लड़ियाँ, ख़ुशी मिली वो भी एक क़तरा
हिसाब करना फ़िज़ूल था तो बहा लिए बेहिसाब आँसू
समझ गए जो वो ही सयाने, न जान पाए वो चोट खाए
जहाँ की फ़ितरत यही बताती हँसी है झूठी सवाब आँसू
नहीं ये कमज़ोरी ना सज़ा है, ये अश्क हर दर्द की दवा है
जो लफ़्ज़ भी बेज़ुबान हों तब सवाल लाखों जवाब आँसू-
उस रब्त उस लगाव से मुझको निजात दे
बरसो पुराने घाव से मुझको निजात दे
रिश्ता पुराने घर की तरह ढह गया है जो
अब उसके रख-रखाव से मुझको निजात दे
मैं बेसबब की उलझनों से थक गई हूँ अब
हर रोज़ के तनाव से मुझको निजात दे
हर मोड पर जो साथ थी वो धूप ही तो है
एहसान वाली छाँव से मुझको निजात दे
जो दिन-ब-दिन मुझी से मुझे दूर ले चले
ऐसे किसी बहाव से मुझको निजात दे
रिसते हुए ये ज़ख़्म कोई सह भी ले मगर
इस रूह के रिसाव से मुझको निजात दे
चंचल ये मन भला सहेगा कैसे फिर जवाल
इस प्यार के चढाव से मुझको निजात दे-
चाहे तो लाख बेकली रखना
सिर्फ़ चेहरे पे इक हँसी रखना
रात रोई हो... कोई बात नहीं
काजल आँखों का ठीक ही रखना
वक़्त की गर्दिशें सिखाती हैं
अपने लहजे में सादगी रखना-
बिखरी हुई रातों के पहलू में उजाला है
काँटों ने ही तो खिलते गुलशन को सम्भाला है
आधा है ये ख़ाली तो, रोता है मेरे दिल क्यों
तू देख भरा आधा, इस जीस्त का प्याला है
हम सोच के निकले थे, फूलों का सफ़र है ये
अंजाम-ए-मोहब्बत में क्यों पाँव में छाला है
हँस के गले मिलते हैं, फिर ज़हर उगलते हैं,
अस्तीन के सापों से, पड़ता रहा पाला है
ये हौसला नीलम का, तू आज़मा ले चाहे
जीवन के तपिश से इस हीरे को निकाला है-
दिल की वीरानियों में, सिर्फ़ बसती हैं यादें
ज़हर घोलें रगों में, ऐसे डसती हैं यादें
थक गई मैं बुलाकर, तुम न आए कभी भी
बिन बुलाए ही जाने, क्यूँ बरसती हैं यादें
शाम ढलते उदासी, रक्स करती है दिल में
थामकर हाथ मेरा, साथ हँसती हैं यादें
तुझसे क़ुर्बत के सपने, भी हैं कितने महंगे
शुक्र यादों का है जो, इतनी सस्ती हैं यादें
जड़ से इनको मिटा दूँ, रोज़ मैं सोचती हूँ
सोचूँ उतना ही अंदर, और धँसती हैं यादें
लुत्फ़ यादों का चखना, इक दफ़ा आ गया तो
फिर न छूटे कभी वो, मय-परस्ती हैं यादें-
भीड़ का हिस्सा न था, पर भीड़ में चलता रहा
क्यूँकि तन्हाई का डर, दिल में सदा पलता रहा
रिश्तों की फ़रमाइशें लिखती रहीं मेरा वजूद
मैं भी हर किरदार के साँचे में फिर ढलता रहा
साँस भी लूँ तो चुभन महसूस होती है मुझे
सीने में यादों का नश्तर इस तरह खलता रहा-