ഓർമ്മകളുടെ ചെപ്പിൽ സൂക്ഷിച്ചു വെച്ച സൗഹൃദങ്ങൾ..
പല ശാഖകളിൽ ചേക്കേറിയവർ
കാലം മായുമ്പോൾ പുതിയ തീരം തേടുന്ന ദേശാടന കിളികളെ പോലെ യാത്ര തുടർന്നവർ
ഒടുവിൽ ഓർമ്മകളുടെ പിൻവിളിയ്ക്ക് കാതോർക്കവെ
വസന്തം തേടി വീണ്ടും ഒത്തു ചേരാൻ കൊതിച്ചവർ..
നമ്മൾ..
ഓർത്തെടുക്കാം ഒരിയ്ക്കൽ കൂടി ഇന്നലകളിലെ നമ്മളെ...-
ये मस्ती यूँ ही नहीं छाई दिल पर,
कुछ पुराने दोस्तों से मुलाकात का असर है।
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दिन गुजर जाना है, रात गुजर जानी है बस ये शाम रह जानी है,
संगत से सब नचीजों की ये महफ़िल भी सज जानी है,
रुखसत हुए आज तो क्या, कल फिर मुलाक़ात हो जानी है,
गुफ्तगू अभी होनी है, नमकीन हो गई खत्म तो क्या ग़म है,
चाय और तमाम पकवानों के साथ अभी मिठाई भी तो खानी है,
सुशांत सर के चुटकुले, जयश्री मैम और ऋचा की विपरीत बातें,
सिद्धार्थ का मुखौटा, दंत चिकित्सक का दौरा,
अभिलाष की खबरें, मटरी पर गंदी नजरें,
प्रिया की बन टिक्की पर बेदर्द झपटें,
लाइट्स के बीच अतुल जो सेल्फी लेता,
पेश है आज की ये छोटी सी कविता,
क्या कल भी हमें इतनी फुर्सत मिल पानी है ?
दिन गुजर जाना है, रात गुजर जानी है बस ये शाम रह जानी है,
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Ek mehfil mein kayi mehfilein
Hoti hai shareeq..
Jis kisi ko dekhoge paas se
wo akela hoga...-
If you don't clear your misunderstanding in time,they become reason for distance forever.
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