Priyank Maithani  
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Observer
Desperate Learner
Creative writer.!!
Joined 21 December 2017


Observer
Desperate Learner
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Joined 21 December 2017
1 NOV 2022 AT 16:28

इस मर्तबा , उस तिलिस्म से हुई
मुलाकात एक बेजान जिस्म से हुई,
हवा भी हर रोज़ इसे छुआ करती थी
जब इस खंडहर में भी रूह बसा करती थी,
रोजनामों में दर्ज़ किसी वारदात जैसी है
दर्द में मर्ज, किसी हालात जैसी है,
हौसलों से अपने रुख मोड़ा करती थी
चार पहियों पर कभी छत दौड़ा करती थी,
आज की राख को देखकर साख ना आंकना,
मौका मिले तो थोड़ा इतिहास में झांकना,
पहचान जिस्म की अपने शान से है,
भले आज सामने कुछ बेजान से है,
खंडहर में भी गूंजती दबी वही एक आवाज है,
बेजान जिस्मों का शायद यही एक राज है.!!!

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6 FEB 2022 AT 21:24

सच ही कहा है किसी ने,

उन सख्सियतों की कमी कभी नहीं खलती,
गीत संगीत की दुनिया में जो घुलती,
एक अलग लहज़े में हमेशा पलती,
शायद,
कुछ आवाज़ें कभी नहीं मरती— % &

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7 DEC 2021 AT 21:36

कभी सुर्खियों में सुनामी, कभी थोड़ा खबरों की गुमनामी,
कभी लिखे हर तरफ बदनामी, क्या रखा है नामों में.....रोजनामों में.....!!!

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26 JUN 2021 AT 13:03

खुद से खुद जुदा हो गया, खुदा हो गया,
तैरने गया डूबा इन लहरों में, सदा खो गया,
अहम का जाल बुनता रहा अपने चारों ओर इस कदर,
कमा लिया नाम शहर में, फिर गुमशुदा हो गया.!!

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22 MAY 2021 AT 0:46

एक बार तो आंदोलन कुछ ऐसा चलाया था,
इंसानों के अलावा पेड़ो को भी गले लगाया था,
नज़र और नज़रिए को सलाम है उस सपूत के,
माटी का रक्षक, वो "सुंदर लाल" कहलाया था.!!

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15 MAY 2021 AT 1:59

Either by "Meditation" or by "Medication"

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14 MAY 2021 AT 0:05

आओ देखो चारों तरफ सन्नाटा है,
तरक्की को जहां ताबूतों से नापा है,
काश मिल जाए उम्मीद से सनी रोशनी कोई,
उसी सुबह के लिए सभी ने यहां दम थामा है,

आओ देखो चारों तरफ सन्नाटा है,
लाखों के मुनाफे में भी यहां आज घाटा है,
उलझे हैं जिंदगी की कश्मकश में आज सभी,
याद रहेंगे जिसने भी इस वक्त दूसरों का ग़म बांटा है,

आओ देखो चारों तरफ सन्नाटा है,

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5 MAR 2021 AT 1:01

"Takeover" and then "Overtake"

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20 JAN 2021 AT 13:06

छूट ना जाए दुश्मन अपने बिल में,
नई ऊर्जा जो दिखी शर्मा और गिल में,
जब सब बहते रहे एक धारा में,
उसके विपरीत बहने का जज़्बा दिखा पुजारा में,
ना कोई लापरवाही, ना किसी बहाने में,
जीत का वो एक रुतबा कप्तान रहाणे में,
हर बीते पल वो फंसते गए उस जाल में,
आत्मविश्वास के बुलबुले जब उठे अग्रवाल में,
रोमांच शुरुआत में कभी, कभी थोड़ा अंत में,
दिलेरी कभी सुंदर में, कभी साथ खड़े पंत में,
सात समंदर पार , अंजान देश में, राज में,
शोले उगलती रफ्तार, ठाकुर में, कभी सिराज में,
सुबह तनाव में, शाम घुली एक जशन में,
लहराती गेंदे और चमकती आंखे नटराजन में,
इन्हीं पंक्तियों में कहीं टीम इंडिया समाई है,
विदेशी धरती पर लड़कर जिसने जीत कमाई है,




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1 NOV 2020 AT 0:47

जंग लिखने की
हथियार कलम , रक्त स्याही , कागज रणभूमि बन जाए,
गुमशुदगी के बाद नाम मशहूर भी तो सीना यूं ही तन जाए.!!

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