एक व्यक्ति को देख मुझे ख्याल आया परिस्थितियां बहुत बदल गईं, नजाने जीवन में कैसा भूचाल आया, निश्चिंत होकर जिन्हें कथ देते थे हर वाक्य आज एक शब्द कहने से पहले भी, हृदय में सवाल आया।
क्यों खाली-खाली बैठे हो, खुद पर भी कुछ उपकार करो। कुछ बुनों-तोड़ो,बांँटों भी, कुछ खुद से भी तो प्यार करो। ये माँझा मन का है तामीर, इसके टूटने तक प्रहार करो। है दिन धूमिल,रातें काली, बस जुगनू का तुम इंतजार करो।
यूं ही बैठे-बैठे जो ख्यालों के मकबरे बनाते हो तुम, क्या वहां हकीकत की चहलकदमी नहीं होती। ये जो मान लिए हैं तुमने कुछ शख्स अपने, क्या सच कहते हो तुम्हें गलतफहमी नहीं होती।
"ये बूंदे जो बरसीं, तो बारिश की गलती, तुम्हें भिगाना जो चाहा, गुजारिश की गलती, न मैं हू गलत, न तुम ही गलत हो, जो हमारी नजरों ने की, उस सिफारिश की गलती "