"ताउम्र की गुलामी मंज़ूर की थी ना मैंने, तुम रिहाई चाहते थे....
तो अब मेरे कंगन का,घड़ी में तब्दील हो जाना,
क्यों खलता है तुम्हें...???"
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उसके बताए रास्ते पर अंजान बनकर बैठ गयी
बेवफ़ा था जो कमबख्त उसी के सामने
मैं वफ़ा की किताब खोलकर बैठ गयी-
भरी थी जेब तब गैर भी रोक रोक कर हाल
पूछते थे जो उजड़ गया पैसों का महल तो
अपने भी अब मौत की तारीख़ पूछते हैं-
ये वादा है मैं लौटूँगा
तुम फिर से मेरी हो लेना
रखना सिर मेरे काँधे
और खुल के रो लेना
(In caption)-
सवालों की गुंजाइश उस रिश्ते में होती है
जिस रिश्ते मैं विश्वास की कमी होती है-
जुगनुओं से कह दो
कोई और घर ढूँढ लें
मुझे अंधेरे में रहने की
आदत हो गयी है-
सुना है मेरे लिए अब किसी के पास
वक़्त नहीं है चलो अच्छा ही है क़ब्र में
किसी ओर के लिए जगह भी नहीं है-
खुदको खुद से खफ़ा लिख रही हूँ
हाँ बेवफ़ा मैं वफ़ा तेरे नाम लिख रही हूँ-
नाराजगी अब खुदसे होने लगी है
उसकी वफ़ा ओर मेरी खामोशी
हर पल खटकने लगी है
यूँ घुट घुट कर जीना
शायद अब मुझको उसका दिल
तोड़ने की सजा मिल रही है-