मुझे पसंद हैं तुम्हारी लिखी सारी कविताएँ ... वो जो छपीं और ख़ूब चर्चित रहीं जिन्हें सभी ने पढ़ा और सराहा.. वो भी जो कभी न छपीं और सीमित रह गईं तुम्हारी डायरी तक... मैंने उन कविताओं को भी पढ़ा है जो कभी पूरी हो ही नहीं पाईं और उन्हें भी जो एक पन्ने में लपेट कर फेंक दी गईं लेकिन तुम्हारी लिखी सभी कविताओं में से मेरी सबसे प्रिय कविता वो है जो कभी पन्नों तक पहुँच ही नहीं पाई... वो जो सिमट कर रह गई मेरी अनावृत पीठ तक!
ईर्षा मत करना अपनी सुन्दरता पर.... यहां तो हर कोई सुंदर है.... खुद के मां बाप के लिए वो भगवान ही है जो हर किसी को एक ही नजरों से देखता है..... तो हम कौन हैं यह जात, भेद पर बिस्वास कर के किसी को किसी की औकात दिखाने वाले हर कोई अपनी जिंदगी अपनी इच्छा से जीना चाहता है... तो उसका/उसकी जिंदगी में हम कौन हैं उसे कहने वाले जब की उनके मां बाप उनके साथ हैं.... * किसी को कुछ बोलने से पहले १००० बार सोच कर बोलना....