मैं, तुम और मेरा दुप्पटा...
मैं तुम पर निर्भर हूँ...इस वज़ह से गलें नही लगाती तुम्हें
मुझे तुम पसंद हो बस...इसलिए लगने दिया गले तुम्हें
रंगबिरंगे तुम हो...और हर रंग जँचता है मुझ पर
अब मुझे तुमसे भी ज़्यादा... विश्वास है खुद के उप्पर
ओढ़ कर तुम्हारे धागों के लहर में...बस मैं ख़ुशी महसूस करती हूँ
बस तुम पसंद आते हो मुझे...गले का फंदा नही जिसमे ख़ुद को जकड़ती हूँ
मैं तुम पर निर्भर हूँ...इस वज़ह से गले नही लगाती तुम्हें
मुझे तुम पसंद हो बस...इसलिए लगने दिया गले तुम्हें
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