चार कंधों पर लेटकर जिंदगी करने लगी आराम।
उठाने वाले गर्व से बोले राम-नाम, राम-नाम।।
राम नाम की माया से बच ना सका कोय।
राजा रंक फ़क़ीर सब अंत में है सोय।।
अंत में है सोय, फिर भी इठला रहा मानव।
इतना नाटक तो खुद ना किया रावण जैसा दानव।।
दानव रावण ने लिया जीवन भर मृत्युंजय का नाम।
फिर भी राम ने किया अंत में काम – तमाम।।
अंत में काम – तमाम है जिंदगी की सच्चाई।
साथ में तो साथ ना जाये सात जन्मवाली लुगाई।।
लुगाई सिर्फ बहायेगी आंसू लेटोगे जब शैय्या पर।
यही वफ़ादारी लुटायेगी अंत में वह सैंय्या पर।
सैंय्या जी का प्यार दफ़न मृत्यु की आगोश में।
भ्र्ष्ट, बेईमान मूर्ख प्राणी ना आ रहे फिर भी होश में।।
ना आ रहे फिर भी होश में, जप रहे मनी-मनी।
कैसी जोकर वाली जिंदगी लग रही फनी – फनी।।
फनी – फनी है सब यहाँ सो जिओ आनंद के संग।
एक सांस ही ले डूबेगी जिंदगी के सारे रंग।।
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तू समय का पहिया है,
और मेरे जीने का ज़रिया है।
तू कोई नायाब इत्र है,
और मेरी अन्तर आत्मा का चरित्र है।
तेरा मैं जितना वर्णन करूं उतना कम है,
और तेरे बिना मेरी ज़िन्दगी में और कुछ नहीं बस गम है।
आजा तू मुझ में समाजा,
मेरा ये व्यर्थ शरीर है तेरा दरवाज़ा,
आ अब इस डरवाज़े को दे खोल,
और कुछ हल्का सा और मीठा सा बोल,
चूंकि मैं हूँ तेरा ताशा और तू है मेरा ढोल।
-सिकंदर-
अंगाअंगात शहारतो उत्सवाचा जोश
ढोल-ताशांच्या आवाजाने सारे होतात मदहोश..
ताशाच्या तर्रीचा आवाज जेव्हा पसरतो सर्वत्र
क्षणामध्ये सारे जमतात एकत्र..
महाराजांच्या नावाच्या गर्जनेने
दुपटीने अंगी एकवटते बळ
ढोल फाटतो पण लागत नाही हाती कळ..
गणेशोत्सवाच्या रंगात जेव्हा ढोलताशे वाजतात
सर्वांचे हातापाय तेव्हा आपोआप नाचतात..
एका ढोलाच्या ठोक्यातच जेव्हा
रसिकांच्या काळजाचा ठोका वाढतो
तोच वादक म्हणून मनामनात गाजतो..!!
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नजरेची बघ धार रोखुनी नार, लवविते कैकांच्या नजरा ...
हे महाराष्ट्राचे वीर भवानी, स्विकारावा माझा मुजरा ...-