अक्सर मेरे सामने हर वो सवाल आ जाता है
जिसका जबाब मेरी मुस्कुराहट के कफ़न
पर लिखा जाता है
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भर कर एक चुटकी सिंदूर की मांग में
वो ले गया घर की रौनक घर वालों के ही सामने-
मेरे अल्फ़ाज़ को पढ़कर वो
कुछ ऐंसे खामोश हुआ
लगता है जैंसे मेरी मौत
की खबर से अभी वाकिफ़ हुआ-
न जाने किस गुनाह की सजा दे दी
उसे लिखकर किसी ओर के नसीब में
मेरे खुदा ने ही मुझे मौत दे दी
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उसके बताए रास्ते पर अंजान बनकर बैठ गयी
बेवफ़ा था जो कमबख्त उसी के सामने
मैं वफ़ा की किताब खोलकर बैठ गयी-
क्या चिड़िया रात में सोती है?
मुझे नहीं पता,
मैंने कभी पता करने की कोशिश भी नहीं की,
क्या चिड़िया रात को
जलती रोशनी से,
आवाज़ों से,
सो नहीं पाती होगी?
मैंने कभी ध्यान नहीं दिया
क्यूंकि चिड़िया सिर्फ चिड़िया है
क्या चिड़िया की पीड़ा और
मानव की पीड़ा बराबर है?
हर उसकी पीड़ा जो कम मान लिया गया है,
उसकी पीड़ा भी कम मान ली गई है ।
पीड़ा पीड़ा में भेद है
जीवन जीवन में भेद है।
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पलके भीग जाया करती है मोहब्बत में
दर्द आँखों से जाहिर होता है__
कलम भी रोती है लिखते लिखते
जब लिखने वाला शायर होता है __-
भरी थी जेब तब गैर भी रोक रोक कर हाल
पूछते थे जो उजड़ गया पैसों का महल तो
अपने भी अब मौत की तारीख़ पूछते हैं-