कोई हसीन सा बहाना बनाकर,
कोई बेवजह की बात बताकर,
तुम मेरी तेरी बात जब अधूरी छोड़ जाते हो,
वो जो इस बार तय किया था भूल जाते हो,
उठ के जाने की बारी मेरी थी, रोकने के फ़र्ज़ तुम्हारे थे |-
भूख लगी ऐसी की मैं सारे सपने परोस कर खा गया,
दुनियादारी की इस रेस में, मैं भी कुछ लोगों से आगे आ गया|
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क्या चिड़िया रात में सोती है?
मुझे नहीं पता,
मैंने कभी पता करने की कोशिश भी नहीं की,
क्या चिड़िया रात को
जलती रोशनी से,
आवाज़ों से,
सो नहीं पाती होगी?
मैंने कभी ध्यान नहीं दिया
क्यूंकि चिड़िया सिर्फ चिड़िया है
क्या चिड़िया की पीड़ा और
मानव की पीड़ा बराबर है?
हर उसकी पीड़ा जो कम मान लिया गया है,
उसकी पीड़ा भी कम मान ली गई है ।
पीड़ा पीड़ा में भेद है
जीवन जीवन में भेद है।
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एक बेमतलब सा रिश्ता है कोई नाम तो नहीं,
इश्क़ में पड़ना और निकलना कोई काम तो नहीं,
मेरा कुछ कहना, तुम्हारा मुस्कुराना,
हसीन है ये सफर, मगर अंजाम तो नहीं ।-
आज हकीकत से बढ़कर कोई फरियाद मांग लें,
आज छत पे चड़के आसमां से चांद मांग लें ।
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हाथ छुड़ा के उठ के चले तुम यूँ,
जैसे चांदनी चली हो चाँद से ज़मीं को ।-
किसी गैर खुद को अपना बताकर,
घंटो उस के लिए जमाने को समझाकर,
फिर तलाशें खुद को रातों में घर लौटकर,
आएंग फिर किसी रात,
ऑफिस से घर जल्दी,
खुद को ढूंढने एक शाम लगाकर,
वहीँ रहना जहाँ चले गए हो तुम,
हम को खुद बताकर ।-
कितने बेचैन?
कितने तन्हा?
कितने आवारा?
कितने सुकून?
हिसाबों की दुनिया में हिसाब कुछ कम ही है,
ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं,
जो भी है, जेबों में रखा बस एक गम ही है।
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