तुम्हें जानता नहीं जो कुछ खास बोलूं,
इक बार जो जान गया, फिर एहसासों का द्वार खोलूं,
या तोड़ दूं मैं अल्फाजों के सीमाओं को,
और जो हैं नजरों के सामने उसे शब्दों मे उतार दूं,
सागर के लहरों सी बातें तेरी, बिन रुकें यह चलतीं जाएं,
और तेरी हंसी शायद ऐसी जो हवा के झोंके सी सबको छू जाएं,
तुझे जानकर भी मैं कुछ न बोलूं,
सिर्फ तुझे देख कर ही अपने दिल को टटोलूं ।
करके बंद दिल के किवाड़ों को,
लफ्जों को खामोशी दे दूं ।
सागर रूपी मृगतृष्णा वो जो मैंने तुम्हें दिखाए,
हंसी के पीछे आंसू मेरे तुम भी न देख पाए ।
-Akanksha & Vishal
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