कहीं खो जाऊँ मैं
कहाँ ढुँढोगे मेरे लफ़्ज़ों को, अगर खामोश हो जाऊँ मैं।
तरस जाओगी मेरी मोहब्बत के लिए, अगर कहीं खो जाऊँ मैं ।
आज हूँ, तो शायद, वजूद नही मेरा।
कोई और रास नहीं मुझे, रहूँ तो बस तेरा।
हर राह छोड़ दी तुझ तक आने में, अब किधर जाऊँ मैं।
तरस जाओगी मेरी मोहब्बत के लिए, अगर कहीं खो जाऊँ मैं।
कहीं और नजर जाए, तो नजर झुका लेता हूं।
कहीं बेवफा ना हो जाऊँ, मै खुद को मना लेता हूँ ।
खामोशी से सुन लेता हूँ तेरी शिकायतें, भले बिखर जाऊँ मैं।
तरस जाओगी मेरी मोहब्बत के लिए, अगर कहीं खो जाऊँ मैं।
ऐसे नहीं दिखती मेरे लफ़्ज़ों में मोहब्बत, खुद को तुझ पर वारा है मैने।
चोट ना लग जाए मेरी फितरत से तुमको, इसलिए हर बार खुद को संवारा है मैने।
तुम्हे चाहते , तुम सा हो गया, अब खुद से कैसे हटाऊँ मैं |
तरस जाओगी मेरी मोहब्बत के लिए, अगर कहीं खो जाऊँ मैं।
चलो कुछ ना सही, पर सच्चा तो हूँ।
बेदाग इश्क़ किया है, दिल से अच्छा तो हूँ।
खो ना देना मुझे कोई ऐसी भूल कर, के टूट जाऊँ मैं।
तरस जाओगी मेरी मोहब्बत के लिए, अगर कहीं खो जाऊँ मैं।
Pritam Singh Yadav
-