जवाब शायद हम दोनों के अंदर है,
मगर अब सूख गया बातों का समंदर है,
आजकल सवाल सिर्फ सवाल रह जाते हैं,
ये सवाल मेरा सूरत-ए-हाल सुनाते हैं,
ये मुझसे पूछते हैं अब कि,
क्यूँ गायब तुम्हारी आंखों की शरारत है,
क्यूँ तुम्हारे लेह्ज़े में अब ये हरारत है,
क्यूँ खोई तुम्हारी ये मुस्कुराहट है,
क्या किसी से जुदाई की ये आफत है...!
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