कभी बंद आँखों में ,
तो कभी आँखे खोलकर।।
कभी गूंज में ,
तो कभी ना बोलकर।।
कभी खुद में ,
तो कभी दुसरो का मन टटोलकर।।
कभी एकांत में,
तो कभी भीड़ से मिलकर।।
कभी कड़वाहट में ,
तो कभी मिसरी घोलकर।।
कभी गम में,
तो कभी खुशियों को मोलकर।।
कभी पिंजरे में,
तो कभी चार दीवारें खोलकर।।
जो दिखलाई देती है,
शायद वही है ज़िन्दगी।।
- spriha sakshi
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