धुप से मुस्काई है नयी ज़िंदगी चमन में
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धूप खिली है आंगन में दुआ रंग लेकर आई है,
ग़म का कोहरा दूर हुआ ख़ुदा की रहमत छाई है।
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धूप खिली है आँगन में
मुस्कानों को पिरोए हुए से है
किरणों की लहर साँसों में
ख़्वाबों को सिमटे हुए से है
इन मख़्मली एहसासों में
तन्हाई जैसे खोए हुए से है
बे-अमाँ सी ज़िन्दगी में
अब रिफ़ाक़त बोए हुए से है-
पर घोर अंधेरा है मन में
मैं ख्वाव सजाए बैठा हूं
आ जाओ तुम अंखियन में
अब धुआं रहेगा पतझड़ तक
यह शहर जला है सावन में
ना इश्क किया , ना ज़ाम पिया
फिर ख़ाक किया इस जीवन में
"मुशकी" हमसे पूछे कोई
क्या खूब मज़ा है तड़पन में-
Dhoop khili hai aangan mein
Aur shikayat ki kaan-o-kaan khabar nahi hui
Dhoop hai janab hamsa bewakuf nahi
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Me apne piyar ki bate us surye se bhi karta hu bato ko sunte hi apne mijaj me vo aa jata hai uski mahrbani se hi aagan khila sa lagta hai
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Aangan me tere per pade aagan khila sa lagta hai jivan mera saral savla gahr khusyo ka lagta hai
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