Faiz Ahmad   (Faizee)
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Joined 17 January 2018


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Joined 17 January 2018
13 MAY 2020 AT 21:04

An early morning mist when faded away
revealing an afriel that stole my heart.
In radiance,her hair shine like blazing gold
Soft winds welcoming her on her way.

O lord! I saw that divine crescent smile,
her warmth cast upon calm on this lonely soul.
Dream ladden eyes sparkling brighter than the sun,
Love's truth as i was home after long exile.

She chose me her companion in that morning mist
I had everything,her as a glorious gift.
Gift of her presence,her angelic sigh,
My gold haired afriel, like nothing i have ever known.

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13 MAY 2020 AT 20:35

An earth that is me
You are only sun in my space
Now without you beside me
I know no light other than your face❤️

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20 FEB 2019 AT 12:24

मौत आई हयात बाक़ी है ‌
दर्द की ईक कायनात बाक़ी है
क्या मैं कहुं बक़ौल ए ख़ुमार
कट गई उम्र रात बाक़ी है।

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20 FEB 2019 AT 12:17

जां आख़िर हुं हयात दे साक़ी
तिश्नगी से निजात दे साक़ी
तु समन्दर पिला दे या मुझ को
ज़ब्त की काएनात दे साक़ी

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20 FEB 2019 AT 11:58

गली की ख़ाक भी छानी मकां तलाश लिया
ज़मीं पर ढूंढा सरे आसमां तलाश लिया
न जाने कौन सी दुनिया में जा बसा है वो
मिला सुराग़ न!सारा जहां तलाश लिया।

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20 FEB 2019 AT 11:45


तेज़ तर गर्दिशे आयाम हुई जाती है
ज़िंदगी क्रब का अब जाम हुई जाती है
मैं तो करता हूं फ़्क़त हुक्म समझ कर तेरा
पर मोहब्बत मेरी बदनाम हुई जाती है।

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11 FEB 2019 AT 17:00

झूठ है के हम तुमको कम चाहते हैं
तुझे चाहते हैं तो हम चाहते हैं

नीम शब सुकूं और तेरा ग़म चाहते हैं
सितम चाहते हैं तेरा करम चाहते हैं

भटकते रहे अबतलक बयाबानियों में
के हम तेरा नक्शे क़दम चाहते हैं

मोहब्बत रहे तेरी दिल में बस दर्द तेरा
यही हम ख़ुदा की क़सम चाहते है़

तेरी यादों से क़ल्ब है मुज़तरिब
अब तेरे लिये अपनी आंखें नम चाहते हैं।

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10 FEB 2019 AT 17:46

یہ فطنہ آدمی کی خانہ ویرانی کو کیا کم ہے
ہوے دوست جس کے دشمن اس کا آسماں کیوں ہو۔


ये फ़ितना आदमी की ख़ाना विरानी को क्या कम है
हुए दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमां क्यों हो।

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10 FEB 2019 AT 17:06

ہاتھ سے تلوار چھوٹی اشک انکھوں سے گرتے گۓ
دشمنو کی بھیڑ میں جب دوست پہچانے گۓ


हाथ से तलवार छूटी अश्क आंखों से गिरते गए
दुश्मनों की भीड़ में जब दोस्त पहचाने गए।

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10 FEB 2019 AT 13:23

निगहत गुल हुं के हर सिम्त महकता जाऊं
मैं भी परवाना हुं के आग में जलता जाऊं

सारे मय ख़्वारों ने मय पी तेरे मयख़ाने में
तिश़्ना लब मैं ही रहा मैं ही बहकता जाऊं

जा के फिरूं जंगल में दश़्त का सीना नापूं
मैं भी मजनु हुं के सहरा में भटकता जाऊं

तेरा हमराज़ तेरी राज़ की बातें जाने
क्या ज़रूरी है कि ये मैं भी समझता जाऊं

हक़ नवाज़ी तो अज़्ल से मेरी तक़दीर में है
फिर क्यों ना मैं सर बातिल का कुचलता जाऊं

तुम मेरी ज़ात में पाओगे समन्दर का सकूत
कोई दरया हुं के जो राह बदलता जाऊं

दे दो सूली मुझे मंसूर ए ज़माना हुं मैं
हौसला कम नहीं जो दार पर डरता जाऊं

मेरे अन्दर का फ़नकार है कहता मुझसे
शअ्र मुझ में ढले मैं शअ्र में ढलता जाऊं

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