ज़िंदगी में एक दिन ऐसा जरूर आता है, जब इंसान को दुनिया के नकारात्मक लोगों से उनकी नकारात्मक बातों से फरक पड़ना ही बंद हो जाता है.. चाहे वो इंसान अंदर से कितना ही भावुक क्यूँ ना हो..
इसका मतलब ये नही की वो प्यार करना छोड़ देता है.. वो रखता है वास्ता उन गिनेचुने लोगों से ही जो उसके मन को भाते है.. जो उसे समझते और समझाते है.. उनसे बे इन्तेहाँ मोहब्बत वो करता है.. हा कभी कबार उन्हें खोने से भी डरता है..
पर अब वो किसीका मोहताज नहीं.. वो अकेले मे भी उतना ही खुश होता है जितना की महफ़िल में..
हाँ अब वो सीख गया है ज़िंदगी को बेहतरीन तरीके से जीना.. सही गलत का फरक भी जानता है.. जानता है कौन उसके लिए सही है कौन गलत.. हाँ अब वो बदल चुका है.. और ये बदलाव भी अच्छा है...