मिठास ज्यादा हो तो मुँह लग जाता है,
मे तेरे करीब आती हूँ तो ये चाँद रूठ सा जाता है..!!!-
फिर वही रात वही चाँद वही तुम वही मैं
क्या किसी छत के मुक़द्दर में लिखे जाएँगे
- Vibha
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पन्ने पर ग़ज़ल तो संवर जाएगी
मगर उसमें तेरी कमी नज़र आएगी ।
मना लूँ केसे अब में खुदा को दोबारा
आखिर मेरी शख्यियत बिखर जाएगी।
जानकर नहीं गिनता में तारे रातों को जानता हूँ
तू फिर चाँद में निखर आएगी।
मसला है किं हर साँस तुझसे जुडी है
जान तुझसे जुदा होकर किधर जाएगी।
खैर, अब में भी कोई बैर नहीं रखता,
खामखा तुझसे मेरी बात बिगड़ जाएगी।-
काश चांद और सूरज को भी इश्क़ हो जाए,
पता तो चले कयामत क्या चीज होती है-
कड़ी धूप में भी हो जाता है अंधेरा उसके बिना,
वो शख़्स मुझे चांद से भी ज्यादा प्यारा है।-
ज़मीं पर रह कर आसमां छू लेती हूं
में अपना प्यार चांद में जी लेती हूं।-
वो चाँद से भी ज्यादा खूबसूरत है,
चाँद मे तो फ़िर भी कुछ दाग हे..!!!
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चाँद की चाँदनी में
डूबकर ये रात
मुझसे मेरा हाल पूछती है
जैसे जानबूझकर मेरे
एकाकीपन पर उपहास कर रही हो
कभी खिलखिलाकर हँसती है
तो कभी आकर
कानों में शोर करती है
ऐसे जैसे अपने भाग्य से
मेरे मन पर ईर्ष्या
उत्पन्न करने में प्रयासरत हो
मैं भी झुंझलाहट में
उससे कहता हूँ कि
अमावस के रोज मिलूँगा तुमसे
अपने एकाकीपन और
तुम्हारे भाग्य की सजीव
स्मृतियां लेकर, देखते हैं
कौन टिकता है तब तक
तुम्हारा भाग्य या फिर
मेरा एकाकीपन....-