कितनी उम्मीदें बंधती हैं और टूट जाती हैं
ये शामें अक्सर कर ही मुझसे रूठ जाती हैं
ये ख्वाहिशें यूं ही बनती हैं और अक्सर टूट जाती है
ये बदली बरसती नहीं बस मुझसे रूठ जाती है
कहीं दूर किसी की याद यूं दिल में बसर करती है जो
ये खामोशी ये मौसम और मायूसी मुझपे असर करती है
कभी ये दिल टूट कर बिखरने को चाहता है
जैसे मैं उसकी मंज़िल और वो मेरा रास्ता है
कभी ये जी उत्साहित होकर उड़ने को चाहता है
कभी उद्वेलित होकर जमीन पर आ गिरता है
कौन जाने ये बयार मुझसे क्या चाहती है
मेरी कविताएं मेरी नहीं ये लेखनी उनको ढालती है
मेरा मुकद्दर मुझे पुकारता है, और मैं आगे बढ़ता हूं
मैं रोता हूं हंसता हो गिर, उठ कर फिर चल पड़ता हूं।
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ये होली मां की याद दिलाती है
लगता है जैसे अब भी यहीं कहीं
काम में लगी होगी, बिखरे से बाल
मुस्कान से खींचे हुए गाल और
रसोई से जैसे उसके बनाए
अनोखे पकवानों के स्वाद की
भीनी भीनी खुशबू सी आती है
लगता है जैसे आवाज लागने पर
अभी पलट कर बोल पड़ेगी कि
एक तो ये घर का काम खत्म नहीं होता
और उपर से तुम बच्चों के नखरे....
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रंगों से भरी ये होली
जैसे हो किसी मन्नत की मौली
जिसे बांध कलाई पर
बचपन की यादों में खो जाता हूं मैं
लड़कपन की हंसी ठिठोली
मेरे दोस्तों की वो टोली
जिन्हें याद कर खयालों में ही
कितने बरस पीछे पहुंच जाता हूं मैं
गुलाल से पटा आंगन रंगों से भीगी चोली
पकवानों के स्वाद से भरा मां का आंचल
हर्ष और उल्लास के सतरंगी बादल
कोई पैर छुए, कोई दुआएं दे
कोई रंग लगाए कोई गले मिले
कोई भागे पिचकारी लेकर तो कोई
खुश है त्योहार की तैयारी देख कर
ये चेहरे कितने उजले हैं ये दिल कितने साफ हैं
कितनी सुंदर ये होली है कितनी सुखद ये यादें हैं
आँखों में चमक लेकर लौट आता हूं मैं
और खुद से खुद को गुलाल लगा कर कहता हूं
Happy Holi.........
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The moonlight is very bright
So that I can't hide my tears
Even these eyes are so heavy
As if they want to show
What they bear...
In this moonlight everything is
So clear.... So yeah!
I don't wanna be clumsy anymore
I don't wanna hide anything anymore
Yeah I'm crying in this moonlight
And my face is shining...
And becoming brighter and brighter
So as my heart is becoming lighter
I'm enjoying this moonlight
Which is still very bright.-
फिर ये अचानक
बदलाव कैसा
बाहर से देखने में तो
सही सलामत ही लगते हो
फिर दिल में गहरा घाव कैसा
और क्या क्या छिपा रखा है
अपने मन के तहख़ाने में
ये भरी दोपहरी में भी
घर के भीतर अलाव कैसा
तुम तो ऐसे न थे
ये बदलाव कैसा?
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तुम ढूंढते हो मुझे तो लगता है
जैसे मैं यहीं कहीं हूं
इन वादियों में उन चोटियों पर
उस धार में इन टीलों पर, पर
जब मैं आवाज़ लगाता हूं खुद को
तो लगता है जैसे मैं कहीं नहीं हूं
न इन फूलों पर न इन हवाओं में
न उन गलियारों में न ही इस बहाव में
तुम्हारा भाव ही मुझे मायने देता है
तुम्हारा प्रेम ही मेरा अस्तित्व है।
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हर बार एकदम साफ़ दिखाई देता है
कि कुछ तो कहती हैं वो चमकती आँखें
पर मैं कभी समझने की कोशिश नहीं करती
कई बार ज्यादा दिमाग़ लगाने से
चीजें बिगड़ जाया करती हैं फिर भी
इक जुड़ाव सा महसूस होता है
जैसे सदियों पुराना कोई नाता हो ।
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धरी रह जाती हैं
और सपने
जैसे पंख लगाकर
कहीं दूर उड़ जाते हैं
रास्ते खुलते ही
दरवाज़े बंद हो जाते हैं
खामोशी गूंजती है
सन्नाटे मंद हो जाते हैं
हम चलते हैं रास्तों में
कभी रास्ते तो कभी
हम खो जाते हैं और
ये ज़ख्म बड़े चालबाज़ हैं
हमें जगाकर खुद सो जाते हैं
हम भी इस रात की तरह
ढलते हैं और इक रोज़
सुबह हो जाते हैं।-
Your voice, It
keeps repeating itself
Just like you are
Still calling for me
That last interaction
Of ours never fades
Even I got confused
That memory seems
So real sometimes.
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तो अंधेरा मिटना चाहिए
हो ये मंशा कि बदले तो
मेरी सीरत बदलनी चाहिए
कोई गम कोई दुःख हो तो
उससे उबरना चाहिए और
जितनी दफा भी दुआ करूं
मानव के हक में होनी चाहिए
शाम का दिया जो जले तो
ये अंधेरा मिटना चाहिए।
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