कि,उम्मीदों की खिड़की अब खोल दो ना तुम!
जो है छुपा मन में,अब बोल दो ना तुम!
इंतजार में बेठे है,न जाने कबसे आशा लिए....
गुस्से में लिए,सारे वचनों को,अब तोड़ दो ना तुम!
हुँ उदास अकेला....और परेशान भी बहुत,
लबों पर झूठी हँसी...मगर लाचार भी बहुत,
अपने इस मन के गुब्बार को,फोड़ दो ना तुम!
उठो और अब कुछ तो बोल दो ना तुम....!!
कि दिखे मुझे दूर से आती आशा कहीं,
और छुठ जाए मेरी निराशा यही,
उठो ना...कबतक यूहीं सोते रहोगे इस कब्र में,
उठकर अब ये चुप्पी तोड़ दो ना तुम!
सुनो ना...कुछ तो बोल दो ना तुम!!
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