समा आज रंगीन है
चारों ओर खुशबू - ए - शीर है
बिरयानी दम भरने चल पड़ी है
दरवाज़े की घंटी
मेहमान के आने पर बज्ज चुकी है।
कुछ दे पाओ
तो खुद को खुद ही एक ईदी दे देना
आज मन से सबको माफ कर देना
हर बैर
हो सके तो साफ कर देना
अपनी खुशियों की खुशबू से
हर कोने को मेहका देना
और एक बार सिर्फ अपने लिए
वो बचपन जैसी खिलखिलाती मुस्कान मुस्का देना
अल्लाह खुश हो जाएंगे ये वादा है मेरा,
बस अपने अंदर की बुराइयों को छोड़कर
सच्चाइयों को अपना लेना
सच्चाइयों को अपना लेना।।
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