दुनिया पूछे जाति हमसे, मानव मेरी जात है
दिखती है अब समता यहां पर, ये दिखावे की सौगात है
हमने देखा हमने पाया, झेले बुरे व्यवहार भी
थके हारे हैं इतने में बस, सुने हैं अत्याचार भी
टूटे न जाने कितने सपने, कितनी टूटी जंजीरे हैं
क्या हुआ था? क्या हो रहा?,न कोई इसकी तस्वीरें हैं
छूआछूत और भेदभाव, आज भी दिखता रहता हैं
हम सब समान है ये बस, चुनाव में ही लगता है
पिछड़े पड़े है गांव आज भी, घर घर की यही कहानी है
ऊंची जाति से है सब कुछ, छोटी जाति दब जाती हैं
पात्र अपने अलग ही रखना, मंदिर में तुम पैर न रखना
बैठा है जो ऊंची जात का, उसके बराबर तुम न बैठना
कैसा है ब्राह्मण कोई, मांस मदिरा सेवन कर जाए
वो किस बात का है क्षत्रिय, जो महिला बच्चों पर हाथ उठाए
जो आवाज़ उठाए वो मिट जाए, मिल न पाए गवाह कोई
डर डर कर ही रह जाते है, साथ भी न दे पाए कोई
कब तक चलेगा ये सब आडंबर, कब तक सोएगा इंसान
कब तक रहेगी ये सीमाएं, कब तक रहेगा अंधा विधान
संविधान में सब है बराबर, सबको मिले समान अधिकार
कैसे मिलेगा सबको न्याय, जब तक रहेगा भ्रष्टाचार
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