मैं आज भी कागज़ कोरा होता,
ग़र तुम न स्याही श्यामल होते..।-
हम "बनारसी" हैं गुरु
जितना गंगा घाट पर समय बिताते है
उसे कही ज्यादा अपने भोलेबाबा
को दिल में बसाते हैं♥️-
बनारस की हर गलियों पर है इसका राज
अमीर-गरीब सबको एक लाइन में
खड़ा कराना है इसका काम
जितना तीखा उतना ही मन भाए
इसे देखकर हर लड़की अपने आप को भूल जाए
पानी पूरी व छोले का है ये संगम
इसे खाकर हर दिल रोमांचक हो जाए
हम तो हमेशा पेटभर खाए
न जाने कैसे लोगों का 1-2 में ही मनभर जाए-
मैं बैठ गया अस्सी घाट पर,बनारस में यूं दिन गुजर गये।
तेरा इश्क न याद रहा,तेरी सारी बातें भी भूल गये....-
मैं अल्हड़ सी कुल्हड़ की वो चाय
तुम घाटों से गुजरती वो गंगा धारा
मैं महादेव के चरण में विराजता
तुम दशाश्वमेध घाट का वो जयकारा
मैं भटका हुआ सा कोई मुसाफ़िर
तुम बनारस की वो मदमस्त गलियां
मैं जेठ की गर्मियों में ऐसे झुलसता
पर सावन भादो जैसे तुम्हारी सहेलियाँ
मैं जलेबी ,लस्सी वाला वो चौपाल
तुम चाय संग बैठी शाम-ए-अस्सी
मैं जीवन से मृत्यु काशी को खोजता
तुम बनारस से जोड़ती मुझे कोई रस्सी
मैं मोह रंग में तेरे यूँ ही रंगता जाता
तुम मोह भंग करती बनारसी पान
मैं बनारस में जैसे मोक्ष को तरसता
तुम उसी बनारसी जीवन की शान
मैं खोजता रहा हर मथुरा वृन्दावन
जहाँ हर मृत्यु शिव की ही दासी हो
तुम मणिकर्णिका का हर दहन झेलती
तुम रोज गंगा से पवित्र होती वो 'काशी' हो-
मुझसे मिलने के वक़्त वो हँसता बहुत है,
वही शख़्स जो बिछड़ने पे रोता बहुत है꫰-
बनारस की गंगा आरती की
रौनक से मोहब्बत हर बार क्या
हर शाम होती है...।।
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सँवारूंगा हर सिलवट अपने हाथों से पंडिताइन..... ❤
बस शर्त ये है कि साड़ी बनारसी होनी चाहिए..... 🥰😍-
भटके हैं मोहब्बत में तेरी कुछ इस कदर,
जैसे तुम गली बनारस की और मैं कोई मुसाफिर!!-
क्यों करते हो दिल की बात अक्सर दिमाग से,
दिल में दुनिया बसती है,दुनिया में दिल नहीं꫰-