ज़िन्दगी ख़ूबसूरत बहुत थी मगर,
तुमने आ कर इसे दोगुना कर दिया|-
Banaras Hindu University
- Raebareli (U.P.)
राखी
हाथ अपने तू मेंहदी-महावर सजा,
घर का मौसम भी अपने गुलाबी सजा,
आ रहे भाई, भगिनि तेरे द्वार पर,
आज उनकी कलाई पे राखी सजा꫰
भाल रोली से,अक्षत से उनका सजा,
घृत के दीपक से अब आरती तू सजा,
चल रही है पवन,आ रही है महक,
उठ रसोई में थाली में मीठा सजा꫰
घर की देहरी पे सुंदर रंगोली सजा,
तन पे अपने रंगीली चुनरिया सजा,
अपनी रक्षा का भईया से वर आज ले,
झूम के आँगन में अपने सपने सजा꫰
वो तो लाये हैं पायल,चल पैर में सजा,
गीत राखी के अपने लबों पर सजा,
घूम जा-झूम जा बन के सावन छटा,
जैसे द्रौपदी के साथ काह्ना सजा꫰-
दिल की टहनी झुकी और बहार आ गई|
जैसे सावन की भीनी फुहार आ गई||
हमने सोचा कि कैसे मिलन हो कि तब,
खुशबुएं खिल उठीं और बयार आ गई||
बरखा में भीग कर हम थके थे बहुत,
स्वप्न में आई तुम और मलार गा गई||
एक दिन मुस्कुरा के मिली थी नज़र,
फिर हुईं बातें दो और लिलार भा गई||-
जो करते हैं नाटक आखों में ग्लिसरीन लगा के,
वो क्या जानेंगे असल ज़िन्दगी में रोने के मायने|-
बस एक बात अक्सर गले से उतरती नहीं है,
कि मेरी बर्बादी में तुम थे,ये बिसरती नहीं है꫰-
हमने सौंपी हैं क़लम को महकने की अदाएँ मगर,
ये तुम जैसों की नाक में दम भी कर सकती है꫰-
हम जहाँ हैं वहाँ तुम आकर तो देखो,
गर है हिम्मत क़लम उठाकर तो देखो꫰
हमसे बेहतर तुम्हें बनने की चुनौती है,
एक बार ख़ुद को आज़मा कर तो देखो꫰꫰-
बहुत भर आती हैं आँखें तो पलकें खोल देती है,
ये रोने का सलीक़ा है, हमें बारिश सिखाती है꫰-
ज़िन्दगी ने चिट्ठी को अपने बग़ैर लिख दिया꫰
जैसे किसी अपने को उसने ग़ैर लिख दिया꫰꫰-