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ब्रह्मचर्यज्ञानदानमैत्रीकारुण्यहर्षोपेक्षाप्रशमपरश्च स्यादिति ॥
ब्रह्मचर्य, ज्ञान, दान, मित्रता, करुणा, खुशी, उपेक्षा और शांति - इन गुणों को अपनाना चाहिए।
सद्वृत्त
चरक संहिता-
मिजाज़ ए इश्क़ "आयुर्वेदिक" है उनका
न सुइयाँ ,न बोतल , न दाखिला
हम दर्द बयां करते रहे
वो अपने लहज़े को नीम सरीखा रखते रहे ।
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बली पुरुषकारो हि दैवमप्यातिवर्तते ।।
-महर्षि वाग्भट
भाग्यपरिवर्तन-निर्देश-बलवान् पुरुषार्थ (पुरुष द्वारा किया गया उद्यम) भाग्य (पूर्वजन्मकृत शुभ-अशुभ कर्मों के बल) को भी बदल देता है।-
कैसी विडंबना है वरदान में मिले सदियों के आयुर्वेद विज्ञान को तत्कालीन सरकारों ने नकारा,
कमीशन और सौदेबाजी के खातिर केमिकल युक्त एलोपैथी को स्वीकारा।-
रोग प्रतिरोधक शक्ति,
बढ़ाने के लिए औषधि,
हमारा नित्य आहार है।
नित्य लो,
समय पर लो,
संतुलित,
ऋतु अनुकूल लो।-
नाविधूते तमःस्कन्धे ज्ञेये ज्ञानं प्रवर्तते ॥२८॥
- महर्षि आत्रेय पुनर्वसु
अंधकारसमूह को नष्ट किये बिना ज्ञातव्य विषय में ज्ञान नही प्राप्त होता ।-
तन्महत् ता महामूलास्तच्चोजः परिरक्षता|
परिहार्या विशेषेण मनसो दुःखहेतवः||१३||
हृद्यं यत् स्याद्यदौजस्यं स्रोतसां यत् प्रसादनम्|
तत्तत् सेव्यं प्रयत्नेन प्रशमो ज्ञानमेव च||१४||-
मैं शास्त्रों में वेद हूं
- गीता
आयुर्वेद अथर्व वेद के अन्तर्गत उसका उपवेद है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी आधुनिक पदार्थ विज्ञान की तरह ही अनुसंधान के अधीन अर्थात अपूर्ण है जबकि आयुर्वेद , वेद वा भगवान श्री राधाकृष्ण की तरह पूर्ण है ।
पूरा ग्रन्थ उपलब्ध न होने के कारण इस पर अनुसंधान करना पड़ता है किन्तु इसका तत्त्व ज्ञान उपलब्ध होने से सही दिशा में जा रहा है।-