जैसे दिखता है सूरज,डूबते हुए समन्दर में
किया है सफर इतना ,पैर में छाला पड़ा हैं ।
ख़ामोशी के मंजर में,हवा का शोर क्यों है
जो करना है कर्म आज कर,क्यों टाले पड़ा है ।
मेरी जिंदगी की किताब में,अंधेरा गहराया क्यों है
क्या किसी काले साया से पाला पड़ा है ।
सच की पैमाईश ना करना,आज के वक़्त में
की तो देखना आज इंसा, काटे लिए पीछे पड़ा है।
तुम मुझे क्या गैर करोंगे, मै तो खुद की दुनिया में हूं
बदनामी का फर्क नहीं,मुझे तो किताबो का नशा पड़ा है ।
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