कुछ अनकही
अनसुनी सी इनायत है मेरी,
तु दुर है मगर फिर भी
हर वक्त़ हिफाजत़ है तेरी l l-
Kyun nhi smjh lete meri Ankahi
Khwahishon ko Tum...
Zarooraton ke sath inhe unchi awaaz
mei bolna nhi aata...!!-
Roz hoti hain kuch ankahi si baatein
tere mere darmiyaan..
Unn palo mein bin kahe tujhse sab keh jana
bada sukoon sa deta hai ❤-
आज भी ये लब्ज़ बहुत कुछ कहना चाहते है,
पर चुप है,क्योंकि सुनने वालो में तुम नहीं हो!!-
रात की खामोशी
चाँद की बेचैनी
हवाओं के शायरी
और इसी के बीच चुपके से सो जाती है
दिल की अनकही कहानी-
हाँ, मुझे पढना पसन्द है
कबिताओं में उलझी भावनाओं की पहेलियाँ
आँखों की अनकही गली में गुज़रती कहानियाँ
और खामोशियों में छुपे लफ्जों की गहराईयाँ
पढना मुझे पसन्द है-
परछाइयाँ पीछे पड़ी हैं उम्र भर
मैं रात के पहलू में अब ठहरा हुआ हूँ।
मुझे ढूंढ न पायें उजाले देर तक
खुद से छुपकर खुद में ही खोया हुआ हूँ।
प्रीति
-
सब कुछ कह दिया लेकिन
कुछ था जो कहा नही
ये अनकहा कुछ, वो है जो
सब कुछ में आता ही नही ।-
लेखनी और भावों के जितनी ही
तारतम्यता जोड़ पाई
कभी अथाह और कभी
निर्वहन मात्र की
जगह उतनी भर मिली
कभी संकड़े गलियारे
कभी खुली सड़क
कभी बंद कमरे कभी खुला आकाश
गुंजाइश इतनी ही थी
कुछ बंजर कुछ उर्वर
गीला आसमान और सूखी सतहें
अहसास के पन्नों में
गुल से कांटों का सफ़र
सूर्योदय से सूर्यास्त
और चांद रातों में
अमावस के किस्से।
प्रीति-