धर्म जाति का नाम लेकर यहां चिता जलायी जाती हैं,
फिर उस पर अपने स्वार्थ की रोटियां पकायी जाती है।
प्रकृति भी शीश झुकाती है जब इंसान में इंसानियत दिख जाती है
क्यों झूठी दुनिया में घूम रहा है समझ जा तू मानवता को,
जब दुनियां से जायेगा तो क्या ले जा पायेगा इस झूठे गुमान को,
अब तो दिल में झाँक रे बन्दे पहचान अब अपने अंदर के इंसान को।
Shivani saini
मत कर बन्दे अभिमान छोड़ दे गुमान को
माया भरम सब का मोह छोड़ दे
पहचान अपने अंदर के इंसान को
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