जिनके मोहब्बत के कसीदे दिन-रात पढ़ते थे लोग ..
वफ़ा तो उन्हीं से ना हो पाई और बेवफ़ा हमें कहते थे लोग।-
यह सुंदर काया कहाँ से लाओगे,
जब सरेआम अशुद्ध हमें बताओगे
ये लाल रंग हर स्त्री की है निशानी
सृष्टि सृजन में ईश्वर का वरदान है
ये माहवारी, जरा शर्म करो नहीं है
ये कोई बीमारी, नाम परम्परा का
और बंदिशों में जकड़ी है हर नारी
क्यों ये रिश्तें पड़ते तुझपर ही भारी
तोड़ बेड़ियाँ, अब तु नहीं है बेचारी
शर्म नहीं मासिक धर्म,पंच दिवसीय
सहन शक्ति की परीक्षा है ये हमारी
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लड़के सुधर रहे हैं। (तकनीकी तौर पर)
और शराब इन दिनों सड़क पर बेआबरू है !
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Hamne kaha ki yaad kro
Kahin ham tumhare
Vahi pehle wale
Maasum toh nahi
Vo muskura kr bole
Are hame toh kuch aisa
Maalum hi nahi-
dekh dekh chote शब्दों ka श्लोका hai पधारा.......
हर ek शब्दों se निकलेगी jwaala
mc kalamkaario brand बनके.....
भर देगा हर एक शलाका...........
मानो मुझे जानो मुझे.......
मैं कौन हु जानकर मुझको
भी बता दो थोड़ा.........
श्लोका नाम शायद......-
Sometimes words are not enough in friendship. "gaali" dena jaruri hota hai.
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ज़माना इतना भी बुरा नहीं होता,
कुछ दायरे वक़्त और हालात भी तय करते हैं।-