कामनाओं में घिरना
और उनमें बहकना,
दो अलग बात है।
हां! मैं बुरा हूं,
क्योंकि कमानाओ से घिरा हूं,
पर मैं भला हूं,
देखो! बहकने से जो बचा हूं।
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मैं हवा बन उड़ू साथ आकाश में
तू मेरे साथ लड़ इन तूफानों से
साथ दूंगी हमेशा मैं मुश्किलों में तेरा
इस परिंदे को उड़ना है खुले आसमान में..-
घास की नोक भर जगह दे दो मुझे
जहाँ मैं रख सकूं अपने शब्दों को
भले ही वो अभी अपने मायने खो
चुके हैं-
प्रिय तुम रहो उजालों में
मुझे अपनी परछाई बना लो
मैं निरंतर चलूँगा संग-
तुम अपने यौवन के वैभव में रहो
बस मैं देख सकूँ उसकी आभा
सुंई की नोंक भर स्थान दे दो उर में
जहाँ मैं अपनी कामना चित्रित कर सकूं
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सदा ऐसे ही मुझे प्यार मिले
और "YQ" सा परिवार मिले।
उत्कृष्ट लेखकों से मुझको
सदा शब्दों का भंडार मिले।
मां शारदे का आशीर्वाद मिले
और ज्ञान की अविरल धार बहे।
अद्भुत शब्दों के संगम से
मेरे लेखन को सम्मान मिले।-
बेपरवाह इंसान ही जिंदगी शान से जीता है
हद से ज्यादा परवाह वाला इंसान तो
हमेशा उलझा ही रहता है।-
यदि आपमें कठिन परिश्रम करने की क्षमता है, तो
आप किसी भी क्षेत्र में सफल हो सकते हैं।
बशर्ते आपको उसमें रुचि होनी चाहिए।
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अपनों को खो कर प्राप्त की गई सफलता
कभी भी इंसान को संतुष्ट नहीं रख सकती।
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शायद अब त्योहारों के भी मायने बदल गए हैं
पहले मिल-जुलकर सब साथ खुशियां मनाते थे,
लेकिन आज सभी को खुद से ही फुर्सत कहां है।
खुद में इस कदर खो गए हैं सब कि
अब तो त्योहार की बधाइयां भी आनी बंद हो गई
हैं,क्यू इतना बदल गए हैं सब???-
इंसान स्वयं की गलती को
भूल समझता है।
और दूसरों के द्वारा
की गई गलती को
अपराध समझता है।-
लोगों की चालाकियां समझती हूं।
यह तो बस मेरे संस्कार हैं
जो हर बार मुझे चुप करा देते हैं।-