अगर मैं एक लडक़ी होता
शायद आज मैं भी जिन्दा होता ।
34 सालों का संघर्ष दुश्वार हुआ,
उत्पीड़न हुआ, अत्याचार हुआ,
महिलाओं के निर्ममता से साक्षात्कार हुआ,
काश... उन महिलाओं में भी थोड़ी सी
पुरुष जैसे संवेदनशीलता का गुण होता,
काश में भी लड़की होता ।
कहते हैं न्याय के लिए अदालत था,
था भी तो क्या उखाड़ लेता,
एक नारीवादी महिला न्यायाधीश होता
जो उसका फैसला करती!
उसकी नजर में भी तो पुरुष ही अपराधी होता,
काश में एक लड़की होता ।
अगर मैं एक लडक़ी होता
शायद आज मैं भी जिन्दा होता ।-
कोई भी हंगामा नहीं बरपेगा
क्योंकि, मरा एक पुरुष है
आत्महत्या एक पुरुष ने की है
और पुरुषों की आत्महत्या को
शुरुआत से ही
कायरता समझा जा रहा है , मजबूरी नहीं,
क्योंकि, पुरुषों को समाज ने जिम्मेदारी दी है
रक्षक बनने की, संरक्षक बनने की
वीर बनने की,
प्रभावशाली और सफल बनने की
और इसी समाज ने
उससे छीन लिए हैं अधिकार रोने के
आंसू बहाने के, दुःख साझा करने के
क्योंकि पुरुषों को तो बस वीर होना चाहिए
उनको तो बस धीर , गंभीर होना चाहिए
ना जाने कितने ही पुरूष
इसी मूक वेदना से पीड़ित हो, मर रहे होंगे
कुछ आत्महत्या करके
तो कुछ,अपनी भावनाओं का घोर दमन करके
उसे सवाल पूछने का हक भी नहीं है
क्योंकि वो जवाबदेह होना चाहिए
जवाब देने वाला होना चाहिए — % &उम्मीद करता हूं जिस पुरुष ने आत्महत्या की है
उसका पुत्र इतना हिम्मतवर, धीर और गंभीर नहीं होगा
कि वो सब कुछ, बस सहता जाए
अपने जिम्मेदारियों को बस, पौरुष के कंधों पे ढोता जाए
और ना कह पाए अपना दुःख दर्द किसी से
क्योंकि ऐसा करने पर समाज उसे
कायर, नपुसंक, और ना जाने क्या क्या कहेगा
और इसी डर से
जब वह अकेला पड़ जाएगा
तो फिर और कोई चारा ना देख
कोई सहारा ना देख
गले में एक फंदा डाल
वो भी,मौत की नींद सो जाएगा
— % &-
पुरूष हो तुम यार अपनी हदें,सीमाओं को पहचानो।
कह रहा कुछ कटु सत्य तुम भले मानो या न मानो।।
तुम्हें ये अंधा-गूंगा,पक्षपाती,पूर्वाग्रही समाज क्या न्याय देगा?
आज नारीवादी युग में तुम्हारा कुछ मूल्य नहीं ये तुम जानो
है एक तरफा कानून बने सभी स्त्रियों के पक्ष में
न दलील आती काम वहां न साक्ष्य,प्रमाण वश में
हो पुरूष तुम तो गलती तुम्हारी ही होगी हमेशा
ये मान कर चलती है हमारी न्यायपालिका अपने ही मद में
पुरूष हो तुम यार अपनी हदें,सीमाओं को पहचानो।
कह रहा कुछ कटु सत्य तुम भले मानो या न मानो।।
तुम पुरुष हो घरेलू हिंसा का शिकार कैसे हो सकते ??
तुम पुरूष हो ब्लैकमेलिंग की मार कैसे हो सह सकते ?
तुम पुरूष हो तुम्हें कोई कैसे झूठे वादों से है ठग सकता ??
तुम पुरूष हो तुम्हारा शोषण(Abuse) कैसे कोई कर सकता ?
पुरूष हो तुम यार अपनी हदें,सीमाओं को पहचानो।
कह रहा कुछ कटु सत्य तुम भले मानो या न मानो।।
फिर कौन वो जेंडर हैं आत्महत्या करने में 10में से हर 7होता
कौन है वो जो हर वर्ष 1.2लाख से भी ज्यादे खुदखुसी करता
जिनपे दर्ज रेप,दहेज,घरेलू हिंसा के cases60% झूठे निकलते
कौन है इसके बाद भी सालों जेल,अदालत,पुलिस में पिसते
पुरूष हो तुम यार अपनी हदें,सीमाओं को पहचानो [NCRB
कह रहा कुछ कटु सत्य तुम भले मानो या न मानो [Data-