अंधेरों से क्या शिकायत करना
गर उजाला होता भी तो क्या होता
तू मेरी तकदीर में ही नहीं था
गर दुआओं में होता भी तो क्या होता
उम्मीद बर आना मुश्किल था
गर तेरा इंतज़ार होता भी तो क्या होता
सदा- ए- दिल ही न सुन सका
नज़रों का इशारा होता भी तो क्या होता
लिखा था नसीब में फासला
गर तू करीब होता भी तो क्या होता
तेरी मंज़िल तो कोई और है
तू मेरा हमसफ़र होता भी तो क्या होता
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सब नसीब की बात है यह कहकर बीच राह में दामन छुड़ाकर कर चल दिए, हां सब नसीब की बात है यह मानकर हम आज भी उसी राह पर इंतज़ार कर रहे हैं
कमजोर नसीब नहीं था तेरा यकीन था जो कुछ पल भी इंतजार न कर सके-
आज भी इंतज़ार है ,तेरे इज़हार का
एक अलग ही नशा है ,तेरे इंतज़ार का||
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हर लम्हा तुम्हे याद करते हैं हम,
पर ये नहीं जानते हैं कि हम तुम्हे याद आते भी है या नही
तुम्हे देखने के लिए तड़पते रहते हैं हम
पर तुम्हारे परसाई तक नसीब ना होती
😔-
तमाम उम्र खुला रहा दयारे दिल
हम इंतज़ार करते रहे और वो रास्ता बदल गए-
एहसास लिखा...एतबार लिखा... इक़रार लिखा
जी हां वही.....इज़हार भी लिखा
मगर उस कमबख्त़ ने अब तक कोई जवाब ना लिखा-
Humari hesiyat Na pucho
Hum akele he rehate he
Harkoi humko apna nhi lgta
Isliye gham khud ka khud hi sehate he-
Dil zid lagaye baitha he
Ki tum hume kyun na mile
Dekhte dekhte kisi aur ke ho gye ho
Syd yehi khabar hume na mile-
दूर तलक मंज़िल नहीं है
मेरा जहां वहीं कहीं है
किससे कहूँ हाल-ए-दिल
सुनने वाला भी ग़मगीं है
हिज्र की काली काली रातों में
तेरी याद बेशुमार है
मैं उसका मुंतज़ीर आज भी हूँ
शायद वो भी मेरे इंतिज़ार में है-
उनके वादे अक्सर...
नाकाम होते हैं...
जिनके इंतजार में हम...
सुबह से शाम होते हैं...
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