याद है मुझे वो बचपन अपना,
हर खेल मे कुछ नया होता था,
कभी कूद-फांद कभी नये किरदार होते थे।
चुराकर पुरानी ऐनक नानी की,
टीचर बन इतराती थी,
मुस्कुरा दिया करती थीं वो तमाशे देखकर हमारे,
डाट खाकर भी खुश हो लिया करते थे।
आज न दुलारने को,न नख़रे उठाने को रहे बुजुर्ग अपने,
पुरानी ऐनक देखकर यादें आज भी ताजा़ हो जाती हैं,
जिनके पीछे कभी दुआओं भरी नज़र हुआ करती थी।।
-