उरावे स्वप्न म्हणूनी मी कधी तुझा रात्री..
त्या रात्रीचे स्वप्न माझे कधी तरी पूर्ण व्हावे..-
आठवणीत रहावे इतके कधी मला जमले नाही...
जमले मला जे ते मी कधी त्याला विसरले नाही...-
भेटावी एकदा कधी तरी तुझा सांजवेळेस रात्र माझी...
पहाटे ची स्वप्न ही कधीतरी तू पूर्ण करशील का माझी...-
दूरियां बोहोत है सपने और हकीकत मैं..
मैं बस खुद को काबिल बनाना चाहता हु...-
रोक लेता हु खुद,
खुद को तुम्हे याद दिलाने से...
करूं याद तुम्हे मैं,
मैं इतना ही खुद से चाहता हु...-
इतनी कोशिशें हमने खुद के लिए ना की कभी..
इतनी कोशिशों को बाद भी वो हमारे नहीं हुए...-
थोड़ी थोड़ी खुशियां बटोरी है मैने जिंदगी मैं..
जो लम्हे साथ तेरे फिर कोई और मैंने गिने नहीं..-
ज़र जमीन जन्नत, सब कुछ मिल ही जाएगा मुझे,
एक तेरी कमी है, जो मुझे मरने नहीं देगी ।-
बिछड़े तुमसे तो तारीखें गिनते गए..
उम्मीद इतनी थी के फ़िरसे मुलाकात होगी...-
हर कोई लौट रहा है घर इस त्यौहार पर..
और मैने उस एक के इंतजार मैं दिए जलाएं रखे है...
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