धर्म के नाम पर होने वाले दंगे
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Dhoop nikal aaye toh mujhe bula lena
in kabron me aaj kal thand bahot hai..-
जब कसूरवार पीछे हटकर भड़का गए दिल्ली
तब जल गई बिखर गई उजड़ गई दिल्ली-
ऐ हुक्मरानों तुम ने मुल्क का क्या हाल कर दिया
धर्म की लड़ाई में इंसानियत को पामाल कर दिया-
तेरा वास तो कणं कणं में है
हे भोलेनाथ तू बसा हर पल मेरे मन में है
ये घरती ये नदियां ये तारे ये चन्द्रमा
तू ने ही तो बनाये हैं
तू करता नहीं भेदभाव
तेरी निगाह तो सब पे है
फिर भी ये लोग धर्म के नाम पर
आपस में ही कट मरते हैं
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(*दंगों के आड़ में...2)
जब बूढ़ी आंखों ने अपनी,
बेटी को लुटते देखा।
राखी वाले बाजू ने,
दिए कशमो को टुटते देखा।
सात फेरों का साक्षी "अग्नि",
जब हमसे वो रूठ गई।
"विश्व गुरु" का स्वप्न वो तेरा,
क्यो उस दिन न टूट गई??
-KkRaO
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लगा के माथे पर माटी जो गुरुराये वो दंगल है, पहलवानी हो जाए साथ लहराए तो दंगल है दाउ और पेच का खेल ये तो अद्भुत निराला ही तो दंगल है, की दो शेर जब आपस मैं टकराए तो दंगल है।
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दंगा कर खुद को वो अपने मज़हब का मसीहा बताते हैं,
मंदिर मस्ज़िद बनाने को रोज मुद्दा उठातें हैं,
जिनके अंदर का इंसान ही मर गया वो ,
अक्सर मज़हब की बात करते नज़र आते हैं,
किस मज़हब से ये लोग आते हैं,
किस ग्रंथ से बेगुनाहों की जान लेना सीख जाते हैं|
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