जब ज़िंदगी आरजी है
तो मुश्किलात और परेशानी मुस्तकिल
कैसे रह सकती हैं
अल्लाह पर भरोसा रखे
क्योंकि हर मुश्किल के बाद आसानी है!
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कुछ इस कदर आदी है ये दिल वीरानियों का,
कि महफिलें अब इसे रास ही नहीं आती हैं !-
ऐ उम्र रवां ! सुन ठहर जरा
माजी के बदलते लम्हों से
कुछ याद के मोती चुनने दे
क्या खोया है, क्या पाया है
कुछ सौदे बाजी करने दे ...-
न सुबह, न शाम, न दोपहर है
मंजर को देख कर लगता है,
उदासियों का शहर है ।-
बदलते मौसमों पर अपनी उम्मीदें न रखो
दिन बारिशों के बड़े मुख्तसिर हुआ करते हैं
بدلتے موسموں پر اپنی اُمیدیں نہ رکھو
دن بارشوں کے بڑے مختصر ہوا کرتے ہیں
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मेरे रूबरू आकर यूँ न शर्माया कर
गर मोहब्बत है तो हक भी जताया कर,
मेरी मोहब्ब्त का ये इक उसूल है 'नूर'
तू अपने सारे दर्द मुझको बताया कर,
मुझे अजीय्यत देती हैं तुम्हारी ये आँखें
खुदा के लिए तू इन पर जुल्म न ढाया न कर ।-
सोचना जरुर
जब कभी फुर्सत मिले
कि हमारा मकसद ए हयात क्या था
ओर हम ने खुद को किन कामों में खपाया है
क्या हुक्म ए रब्बी को माना है
या खुद को दुनिया के दजल मे फसाया है,
सोचना जरुर
जब कभी फुर्सत मिले
क्या कभी अपने गुनाहों पर शर्मिन्दा होकर
तन्हाई मे उसे याद करके आँसू बहाया है
जब भी कभी मुश्किलों में घिरे हैं हम
क्या उसके सिवा किसी ओर को अपना मुखलिस पाया है,
सोचना जरुर
जब कभी फुर्सत मिले
इस धोखे की जिंदगी को कैसे गुजारा है
अपने वक्त को किन कामों में लगाया है
उस रब की मोहब्बत काफी है मेरे लिए
क्या ये सोच कर दिल मे सुकून आया है,
सोचना जरुर
जब कभी फुर्सत मिले
जरुर सोचना !!!
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तेरे बाद भी हम तुझ से मोहब्बत निभा रहे हैं
ये वो गुनाह है जिसकी सजा हम पा रहें हैं
ऐसा मुब्तिला हुए तेरे मर्ज ए इश्क में
जिससे निजात के लिए कब्र की आगोश मे जा रहें हैं-
रात काँटे की तरह चुभती है
जब कुछ यादें दिल पर दस्तक देती हैं,
दिल में उदासी छा जाती है
ओर आंखों में नमी आ जाती है,
जब दर्द अश्क बन कर बहता है
फिर रात तवील हो जाती है,
सुबह जब आँखें खुलती हैं
कमबख्त सब राज बयां कर जाती हैं
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वक्त खुद को इक
बार दोहराता जरूर है,
कहानियां वही रहती हैं
ज़िंदगी की,
बस किरदार बदल
जाते हैं।-