To Henry and Alice
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हर कोई उसे चाहता है
पर उसने सिर्फ एक को चाहा
वो शक्ति ही थी शिव की
जिसने बैरागी को गृहस्थ बनाया...-
मेरी खिड़की पर प्रतिबिंबित
गिरते हुए आंसू
मेरे दुखों को घूरते हुए
टपक रहे हैं
जैसे सफेद चादर पर धुंधली बारिश
दाग दिख रहे हैं
मेरी असहाय हार के
दर्द को रोकने की कोशिश कर रहे हैं
अधिरोपित तुम और तुम्हारा लाभ.....-
Pehli baar esa hua ki
Tu chodhkar gaya or hume zara bhi
Dukh nhi hua
Lagta hai ishvar ne bairagi banna bhi
Sikha hi diya hai ....-
पन्नों पर शब्दों का उदय
लययुक्त हरी भरी कल्पनाओं में
वास्तविकताओं का चित्रण
मुझमें बारीक सी कहीं वो
एक आंधी सी नम्र
श्वास में तूफ़ान लिए
मेरी बिखरी आत्मा पर स्पंदन
नीला प्रतिबिंब
एक ध्यान
व्यवस्थित वासना में डूबे
बंजर दिलों के
शीतकालीन आंसू
गुस्ताख़ बर्फ पर
धड़कते, थिरकते जज़्बात
छलके
और बिखर गए चुपचाप
आह अब हिम्मत शेष नहीं है
भागने की
गुप्त आनंद के उत्सव से
मेरे अबराम से.....-
आदि योगी भगवान शिव सांसारिक राग द्वेष से परे निर्विकार योगी का प्रबल प्रतिबिंब हैं जो ग्रहस्त होते हुए भी निरंतर सर्वोच्च वैराग्य की अवस्था में विद्यमान हैं
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... आदेश हुआ है शिव का, अब स्वयं से भी विरक्त हो जाता हूं ...
... जिस पथ मात्र से भटक गया, वापस उसी मार्ग पर जाता हूं ...-
... अथाह वैराग्य के महापुंज से ओतप्रोत मैं तो बस क्षणभंगुर बैरागी ...
... मरघट मेरा स्थान, शिव मेरे सर्वस्व, ये अक्षि शिव दर्शन की रागी ...-
हे शिव
तुम स्थूल, भूगोल-खगोल, भूत-भविष्य, तुम गगनचुंबी तुम तलस्पर्शी ...
... हे शिव तुम ही हो देवों के महादेव, तुमसे ही मां गंगा बरसी ...
... सृजनी तुम हो, तुम ही विनाशी, विराट-क्षुद्र, सन्धि-विग्रह संग तुम कैलाशी ...
... व्यष्टि-समष्टि, संयुक्त-विमुक्त, हे त्रिलोचन तुम ही हो घट घट वासी ...-